भगवान शिव का नीलकण्ठ स्वरूप त्याग व सहनशीलता का गुण धारण करने की प्रेरणा देता है- डॉ. सर्वेश्वर

देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से दिल्ली क्षेत्र के डी. डी. ए ग्राउंड, रोहिणी सेक्टर-16 में 9-15 जून 2024 तक सात-दिवसीय भगवान शिव कथा का भव्य आयोजन किया जा रहा है। कथाके दूसरे दिवस दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य डॉ. सर्वेश्वर जी ने समुद्र मंथन प्रसंग का वर्णन करते हुए बताया कि जब समुद्र मंथन से हलाहल कालकूट विष निकला तो जगत के कल्याण के लिए भगवान शिव ने उस विष का पान कर उसे अपने कण्ठ में धारण कर लिया। जिसके कारण उनका एक नाम नीलकण्ठ भी पड़ गया।

उन्होंने कथा का मर्म समझाते हुए बताया कि भगवान शिव का नीलकण्ठ स्वरूप हमें त्याग व सहनशीलता का गुण अपने जीवन में धारण करने की प्रेरणा देता है। भगवाननीलकण्ठ के भक्त होने के नाते हमारा भी ये कर्त्तव्य है कि हम भी विषपान करना सीखें। अर्थात निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर जगत के कल्याण में अपना योगदान दें। ‘मैं’ से ‘हम’ तक का सफर तय करें। आज मानव अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की पीठ में छुरा घोंपते हुए भी संकोच नहीं करता। इन्सान तो क्या,हमने तो बेज़ुबान पशु पक्षियों को भी नहीं छोड़ा। जीभ के क्षणिक स्वाद के लिए आज रोज़ाना हज़ारों जीव काट दिए जाते हैं। यूँ तो हम महादेव के भक्त हैं परंतु शायद हम ये भूल जाते हैं कि महादेव का एक नाम पशुपतिनाथ भी है। अर्थात जो पशुओं के स्वामी हैं। स्वयं ही सोचिये पशुओं की हत्या कर क्या हम अपने पशुपतिनाथ को प्रसन्न कर पाएंगे? इसलिए आवश्यकता है प्रभु के सच्चे भक्त का कर्त्तव्य निभाने की। परपीड़ा को समझ अपने क्षुद्र स्वार्थों का परित्याग करने की। ये तब ही सम्भव है जब ब्रह्मज्ञान के माध्यम से हम नीलकण्ठ का दर्शन अपने घट में प्राप्त करेंगे। इस अवसर पर कथापंडाल में शिवरात्रि महोत्सव भी धूमधाम से मनाया गया, जिसमें भक्तों ने नृत्य कर खूब आनंद प्राप्त किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *