नवरात्रि पर्व के शुभारम्भ पर आश्रम में आयोजित हुआ ‘विशेष कार्यक्रम’ मानव मन की ‘दुर्गति’ का नाश करने वाली शक्ति हैं माँ दुर्गा- साध्वी विदुषी जाह्नवी भारती जी

-आश्रम सभागार में गँूजे माँ आदिशक्ति के बुलन्द जयकारे
देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा यह घोषणा करना कि संस्थान प्रत्येक भारतीय पर्व-त्यौहार को दिव्यता तथा भव्यता के साथ मनाया करता है, जन-जन को इनमें छुपे गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों तथा दिव्य संदेशों से अवगत कराने के साथ-साथ ईश्वर की शाश्वत भक्ति से जोड़ने का शास्त्र-सम्मत महती कार्य किया करता है। आज विशाल पैमाने पर नवरात्रि के प्रथम दिवस पर आयोजित इस कार्यक्रम ने यह सिद्ध कर भी दिया।
कार्यक्रम में साध्वी जाह्नवी भारती जी ने बताया कि माँ दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है, यह महिषासुर वास्तव में मानव मन के भीतर स्थित दुष्प्रवृत्तियों का प्रतीक है। भीतर ही माँ जगदम्बा दुर्गा भवानी का भी वास है। मन के भीतर के समस्त विकारों, बुराईयों तथा निकृष्टताओं का नाश कर देने वाली शक्ति का नाम ही है ‘दुर्गा’। मनोविकार मानव की दुर्गति कर उसे रसातल में पहुंचाने का ही काम किया करते हैं और माँ इन मनोविकारों पर प्रहार कर इनका अंत करते हुए मानव मन को दिव्य प्रकाश से भर कर जीव का अनन्त जागरण कर दिया करती हैं। भीतर का अनन्त प्रकाश ही वह अखण्ड ज्योति है जो सदा प्रज्जवलित रहकर मानव जीवन को आलौकित किया करती है। सुश्री जाह्नवी भारती जी द्वारा भक्तजनों को वैष्णों देवी की आलौकिक यात्रा भी करवाई गई। उन्होंने प्रभाव पूर्ण रूप से यात्रा मंे स्थित पड़ावों से लेकर गर्भजून तक की यात्रा का सुन्दर वर्णन कर भक्तजनों को अभिभूत कर दिया।
संसार का प्रत्येक रिश्ता माँ के बाद ही शुरू होता है- साध्वी ऋतम्भरा भारती जी
इंसान जब जीवन की उलझनों में उलझ जाता है, गर्दिशों की गर्त में डूबने लगता है तब एक माँ ही है जिसकी ममतामयी गोद में सर रखकर वह शांति और विश्रान्ति दोनों प्राप्त करता है। एक एैसी गोद जिसमें कोई बनावट नहीं, कोई मिलावट नहीं। एक संसारिक माँ की गोद सीमित हो सकती है किन्तु वह सम्पूर्ण विश्व की माँ जिसे पराम्बा जगदम्बे परमकल्याणी दुर्गा कहकर समस्त धर्म-ग्रन्थ अभिवंदित किया करते हैं, इस माँ की दिव्य गोद जिसे प्राप्त हो जाए फिर उसके सौभाग्य का तो कहना ही क्या? अपनी संतान को अपनी विशाल गोद में आश्रय प्रदान करने वाली माँ जगदम्बिका भवानी का पावन पर्व नवरात्रि इसी बात का द्योतक है कि मानव तन के नवद्वारों, जो कि शक्ति को क्षीण करने में संलग्न रहते हैं इनसे ऊपर उठकर ‘दशम द्वार’ में स्थित आदि शक्ति की उपासना से ही यह परम गोद प्राप्त हो पाती है। साध्वी ऋतम्भरा भारती जी ने नवरात्रि की सारगर्भित व्याख्या कर भक्तजनों का ज्ञानवर्धन किया।
माता के ‘नवरूप’ देते हैं समाज़ को अनुपम संदेश- साध्वी विदुषी सुभाषा भारती जी
सद्गुरू श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुभाषा भारती जी ने अपने उद्बोधन में माता के नवरूपों का विश्लेषण करते हुए इन्हें समाज़ के लिए दिव्य संदेश बताया। प्रथम शैलपुत्री को मानव के दृढ़ संकल्प से जोड़ते हुए कहा कि शैल अर्थात पर्वत, मानव भक्ति मार्ग पर पर्वत की तरह दृढ़ता पूर्वक चले यही माँ का शैलपुत्री स्वरूप कहता है। दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी यह संदेश देता है कि भक्ति मार्ग में सच्चरित्रता मुख्य भूमिका निभाती है, जिसका चरित्र उज्जवल है उसे माँ की प्राप्ति में कोई बाधा नहीं, ब्रह्मचर्य वह शक्ति है जो भक्ति मार्ग में साधक को सबलता प्रदान करती है इसीलिए एक साधक को शिव संकल्प के साथ ब्रह्मचर्य की पालना करनी चाहिए। चन्द्रघण्टा स्वरूप दसों इंद्रियों के उपर परमात्मा के होने का संकेत देता है। कूषमान्डा स्वरूप बताता है कि जिस प्रकार एक बीज में सारतत्व समाया होता है इसी प्रकार प्रत्येक जीव में भी वह ईश्वर बीज रूप में विद्यमान रहता है। स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि इन सभी के भीतर गूढ़ संदेश समाए हुए हैं। कालरात्रि संकेत है कि माता को विकारों और बुराईयों की बलि चढ़ाने पर ही प्रसन्नता होती है, किसी जीव की बलि देने पर माता कभी प्रसन्न नहीं हुआ करती। महागौरी बैल पर अर्थात धर्म पर आरूढ़ हैं जो कि संदेश देती हैं कि भक्त को अपने भीतर धर्म को धारण करना चाहिए और उसी के नियमों के आधार पर अपने जीवन को चलाना चाहिए। सिद्धिदात्रि का अर्थ है जब एक साधक परमात्मा के साथ पूर्ण रूप से जुड़ जाता है तब प्रभु कृपा से समस्त रिद्धियां तथा सिद्धियां उसे अपने भीतर ही प्राप्त हो जाया करती हैं।
देवी के ज्योति स्वरूप का दर्शन कराने की क्षमता पूर्ण सद्गुरू में- साध्वी अरूणिमा भारती जी:-
संस्थान की देहरादून समन्वयक विदुषी अरूणिमा भारती जी ने उपस्थित भक्त श्रद्धालुगणों को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि आदि शक्ति माँ भवानी को मात्र मानने में ही कल्याण सम्भव नहीं है बल्कि उन्हें पूर्ण रूपेण जान लेने पर ही उनकी कृपा को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने इस श्लोक का उच्चारण करते हुए देवी को ज्योति स्वरूपिणी बताते हुए भक्तों का मार्ग दर्शन किया।
या देवी सर्वभूतेषु ज्योतिरूपेण संस्थिता नमस्तस्यै-नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।
देवी के ज्योति स्वरूप का दिव्य दर्शन सद्गुरू प्रदत्त ब्रह्म्ज्ञान के द्वारा सहज़ता से प्राप्त किया जा सकता है। देवी का तो सम्पूर्ण स्वरूप ही ज्ञानमय स्वरूप है। ब्रह्म्ज्ञान के तेजोमय आलोक में देवी की दिव्य छवि का दर्शन सुलभ हो जाता है। ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के उपरान्त देवी भगवती के उन सभी रहस्यों से एक साधक अवगत हो जाया करता है जिन्हें कि साधारण अवस्था में पाना असम्भव बात है।
अनेक भजनों को श्रवण कर श्रोता मंत्रमुग्ध होते गए। भजनों की रसधार में स्वयं को भिगोते गए। 1- माता जिनको याद करे वो लोग निराले होते हैं, चलो बुलावा आया है……. 2- तू ही तू माँ, तू ही तू, कण-कण में है तू ही तू…….. 3- जय-जय माँ, सारे जग विच ऊंची तेरी शान…….. 4- दसों दिशाओं में गूंजे माँ तेरी जय-जयकार, जय देवी माँ, जय अम्बे माँ…….. 5- जय जग जननी जय हे आदि भवानी, जय त्रिभुवन सुखकारी माँ……., 6- तेरे नाम का सुमिरन करके मेरे मन में सुख भर आया तथा 7- मईया रानी जय हो, अम्बेरानी जय हो…….. इत्यादि भजनों के द्वारा खूब समां बांधा गया।
प्रसाद का वितरण कर साप्ताहिक कार्यक्रम को विराम दिया गया।
भवदीय- दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, देहरादून।

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