फरीदाबाद। ‘अनादि’ देसी घी, वह भी बिल्व पत्र के साथ माटी की हांडी में पका हुआ। दावा है कि यह घी न तो कोलेस्ट्राल बढ़ाता है और न ही शुगर। कई वर्षों से मुंबई, नोएडा, नागपुर असम, दुबई, अमेरिका, हांगकांग, सिंगापुर में रहे भारतीय और वहां के स्थानीय निवासी भी इसे पसंद करते हैं। फरीदाबाद के एक वृद्धाश्रम में वयस्क, बुजुर्ग महिलाएं गायों की सेवा करती हैं, दूध दुहती हैं, उनकी देखभाल करती हैं और फिर विशेष तरीके से घी तैयार करती हैं। तभी इस घी की कीमत भी 2,640 रुपये प्रति लीटर है। अनादि सेवा प्रकल्प वृद्धाश्रम के संचालक प्रणव शुक्ला बताते हैं कि गोधाम में गीर, साहीवाल और डांगी नस्ल की 35 गाय ऐसी हैं, जिनसे रोजाना करीब 300 लीटर दूध प्राप्त होता है। इस तरह महीने भर में लगभग नौ हजार लीटर दूध निकलता है। करीब तीन हजार लीटर दूध आसपास के क्षेत्र के लोग 70 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से खरीदते हैं और छह हजार लीटर दूध से लगभग 200 लीटर देशी घी बनाया जाता है। आश्रम में 37 बुजुर्ग हैं। इनमें से 21 महिलाएं हैं। हर सोमवार और गुरुवार को पांच महिलाएं आशा, कृष्णा, रामलली, अंगूरी तथा हरनंदी मिट्टी के चूल्हे पर दूध से घी बनाने के काम में जुटी रहती हैं। करीब 67 वर्षीय रामलली कहती हैं कि हमारा सौभाग्य है कि हम गोमाता की सेवा में इस तरह जुड़े हैं।
घी की पौष्टिकता को बढ़ाने के लिए उसमें बिल्व पत्र पकाया जाता है। गायों के आहार में नीम के पत्ते, और चूना के अलावा जयवंती पंचांग तथा सतावर भी मिलाया जाता है। गायों को गेहूं का दलिया, चने की दाल, जौ और मक्का भी खाने को दिया जाता है। यहां गायों को अक्टूबर से मार्च तक हल्दी का सेवन भी कराया जाता है।मक्खन तैयार करने में व्यस्त रामलली घी तैयार करने की विधि बड़ी सहजता से बताती हैं। सबसे पहले 30 लीटर दूध को हांडी में तीन-चार घंटे हल्की आंच पर पकाया जाता है। इसमें लगभग दो लीटर दूध पक चुका होता है। यानी 28 लीटर दूध बचता है। इसे ठंडा करने के बाद दही जमा दिया जाता है। दही को मथा जाता है। करीब सवा घंटा मथने की प्रक्रिया चलती है, तब जाकर इसमें से मक्खन निकाला जाता है। मशीन का प्रयोग नहीं किया जाता। इस दौरान दो से तीन बार ठंडा पानी और बर्फ भी डाली जाती है। इस प्रक्रिया के बाद सवा लीटर मक्खन निकलता है। सवा लीटर मक्खन को चूल्हे पर पकाया जाता है और इस तरह लगभग 30 लीटर दूध से एक लीटर देशी घी तैयार होता है।