नई दिल्ली। कोरोना संकट ने मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। सरकार के पास विकास एवं कल्याण के बड़े कार्यो को आगे बढ़ाने के लिए धन नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद कह चुके हैं कि सरकार का खजाना खाली है, लेकिन वह कोई भी जरूरी काम रुकने नहीं देंगे। वह बार-बार दोहरा रहे हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जरूरी राशि जुटाई जाएगी और कोई अन्य काम भी ठप नहीं होने पाएगा। विपक्ष सवाल उठा रहा है कि जब खजाने में धन ही नहीं है तो विकास एवं कल्याण के कार्यक्रम संचालित होंगे तो कैसे?
दरअसल, कोरोना संकट की वजह से राज्य में राजस्व संग्रह प्रभावित हुआ है, जिसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। यही वजह है कि सरकार सिर्फ उन्हीं कामों को आगे बढ़ा रही है जो बेहद जरूरी हैं और जो अर्थव्यवस्था को गति देने वाले हैं। चाहे किसानों के खातों में मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के तहत दो-दो हजार रुपये जमा करना हो या फिर पथ विक्रेताओं को एक-एक हजार रुपये की आíथक सहायता देनी हो, सरकार ने इसके लिए जरूरी धनराशि का इंतजाम किया है। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी प्रबंध किए गए हैं। ऑक्सीजन, रेमडेसिविर सहित चिकित्सा संबंधी व्यवस्था को सरकार ने प्रभावित नहीं होने दिया है। स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के उपायों पर अब भी काम चल रहा है। लोक कल्याण के जरूरी कार्यो की गति भी सरकार बनाए रखना चाहती है, लेकिन यह सच है कि इसके लिए बड़े और कड़े निर्णय की जरूरत पड़ेगी। राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए इस समय राजस्व संग्रह बढ़ाना बेहद जरूरी है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री लगातार मंत्रियों और विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक कर अतिरिक्त आय के उपायों पर जोर देने के लिए कह रहे हैं। प्रदेश पर ढाई लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज हो चुका है। कोरोना संकट को देखते हुए वित्तीय वर्ष 2020-21 में सरकार ने करीब 55 हजार करोड़ रुपये का ऋण लिया था। केंद्र सरकार ने विषम परिस्थितियों को देखते हुए राज्य को सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में दो फीसद अतिरिक्त ऋण लेने की अनुमति दी थी। इसमें करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपये बिना शर्त ऋण लेने की अनुमति मिली थी। शेष ऋण के लिए शर्तो को पूरा करना था, जिसे सरकार ने सबसे पहले पूरा किया है। इसमें ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ शुरू करने, बिजली वितरण व्यवस्था में सुधार आदि शामिल हैं।
सरकार ने अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए ऐसी अनुपयोगी परिसंपत्तियों को नीलाम करने की प्रक्रिया शुरू की है जिन पर अतिक्रमण है और सरकार को कोई राजस्व नहीं मिल रहा है। इसके तहत सड़क परिवहन निगम, राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक सहित कई विभागों की परिसंपत्तियों को नीलाम करने की कार्रवाई की जा रही है। लोक निर्माण विभाग करीब 500 करोड़ रुपये का प्रबंध अपने स्तर से कर रहा है। सरकार ने तय किया है कि विकास की गति सुधारने के लिए आíथक गतिविधियों को तेजी के साथ आगे बढ़ाना होगा। मुख्यमंत्री लगातार उन विभागों की समीक्षाएं कर रहे हैं जिनसे राजस्व प्राप्त होता है। राजस्व देने वाले विभागों की व्यवस्थाओं में सुधार करके आíथक गतिविधियों को बढ़ाने पर फोकस किया जा रहा है। खनिज, आबकारी, वाणिज्यिक कर, ऊर्जा सहित कई विभागों में सुधार की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। आबकारी में कर चोरी को रोकने के लिए भी 2021-22 की नीति में प्रविधान किए गए हैं।
संकट के समय में पेट्रोल-डीजल से होने वाली आय सरकार का सबसे बड़ा सहारा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही की बात करें तो इस दौरान पेट्रोल-डीजल से सरकार को करीब 800 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय हुई है। वर्ष 2020-21 में इससे 12 हजार 130 करोड़ रुपये मिले, जबकि 2019-20 में यह राशि 10 हजार 806 करोड़ रुपये थी। मतलब यह कि एक साल के अंदर खजाने में 1,680 करोड़ रुपये का इजाफा पेट्रोल-डीजल के माध्यम से हुआ। मध्य प्रदेश में पेट्रोल पर 33 फीसद वैट, साढ़े चार रुपये प्रति लीटर अतिरिक्त शुल्क और एक फीसद सेस लगता है। डीजल पर 23 प्रतिशत वैट, तीन रुपये प्रति लीटर अतिरिक्त शुल्क और एक फीसद सेस लगता है। हालांकि इसे कम करने की लगातार मांग की जा रही है, लेकिन राज्य की सुरक्षित आय का सबसे बड़ा माध्यम होने की वजह से सरकार फिलहाल इसे कम करने के पक्ष में नहीं है। वित्तीय संकट से निकलने के प्रयासों के तहत मुख्यमंत्री ने आय बढ़ाने के साथ-साथ खर्चो में कटौती पर भी जोर दिया है। मुख्यमंत्री एवं मंत्रियों ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बैठकें करके विभिन्न स्तरों पर आवागमन में होने वाला व्यय कम किया है। आगे के लिए भी एक व्यवस्था बना दी गई है कि विभागीय बैठकों के लिए अब जिलों से अधिकारियों को भोपाल आने की आवश्यकता नहीं है। निश्चित रूप से सरकार की यह कोशिश अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मददगार होगी।