नई दिल्ली: उत्तराखंड चुनाव से पहले एक तरफ राज्य में विकास के दावे हैं, तो दूसरी तरफ बेरोज़गारी संबंधी डेटा का कहना है कि राज्य में रोज़गार 10 फीसदी तक घट चुका है. इतनी बड़ी गिरावट बीते पांच सालों में दर्ज की गई है. यह डेटा सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने जारी किया है, जिसके विश्लेषण के बाद बताया जा रहा है कि दिसंबर 2021 में रोज़गार पाए लोगों की संख्या कितनी रही जबकि इन लोगों की संख्या 2016 में कितनी थी. यानी बीते पांच सालों में रोज़गार की दर और रोज़गार पाने वाले लोगों की आबादी के संबंध में महत्चपूर्ण जानकारी यह डेटा देता है.
सीएमआईई ने जो डेटा जारी किया है, उसके विश्लेषण के बाद कहा जा रहा है कि उत्तराखंड में दिसंबर 2016 में रोज़गार की दर 40.1 फीसदी थी, जो दिसंबर 2021 में 30.43 फीसदी रह गई. यानी इस दर में करीब 10 फीसदी की गिरावट साफ दिख रही है. इंडियन एक्सप्रेस की विश्लेषण आधारित रिपोर्ट की मानें तो राज्य में कितने लोगों को रोज़गार प्राप्त है, इसका आंकड़ा 27.82 है, जिसमें 14 फीसदी की गिरावट है. इसी तरह, राज्य में रोज़गार पाने योग्य आबादी 91 लाख के आसपास बताई गई है, जिसमें 14 फीसदी की बढ़ोत्तरी पिछले पांच सालों में हुई है.
और क्या है यूपी का हाल?
उत्तर प्रदेश में भी ये आंकड़े 2016 के मुकाबले रोज़गार दर के कम होने की गवाही दे रहे हैं. 2016 में जहां यह दर 38.5 फीसदी थी, वहीं 2021 के आखिर में यह 32.8 फीसदी दर्ज हुई. यूपी में 16 लाख से ज़्यादा लोग बेरोज़गारी के शिकार बताए गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक इस डेटा को ऐसे भी समझा जा सकता है कि अगर 2016 जितनी ही रोज़गार दर 2021 में भी रही होती, तो इसका मतलब होता कि 1 करोड़ अतिरिक्त लोगों को रोज़गार मिला क्योंकि रोज़गार पाने की पात्र आबादी राज्य में पांच सालों में 2.12 करोड़ तक बढ़ चुकी है.
क्या सिर्फ चुनावी राज्य ही प्रभावित हुए?
नहीं. पूरे देश में रोज़गार दर 2016 के मुकाबले 6 फीसदी तक घटी है. यानी तब 41.2 लोगों को रोज़गार हासिल था और 2021 के आखिर तक यह संख्या 40.4 करोड़ रही, जबकि रोज़गार के पात्र लोगों की संख्या देश में 108 करोड़ तक हो चुकी है. पंजाब और गोवा में भी इस साल चुनाव हैं और इन दोनों राज्यों में भी रोज़गार दर में खासी गिरावट है. गोवा में तो रोज़गार दर 2016 में 50 फीसदी के पास थी, जो पांच साल में घटकर 31.99 रह गई.
कितनी अहमियत रखता है ये डेटा?
रोज़गार दर को बेरोज़गारी मापने का सटीक तरीका माना जा सकता है, लेकिन भारत में करीब एक दशक से इस प्रैक्टिस पर बहस चल रही है. रिपोर्ट की मानें तो हालांकि सीएमआईई अपनी प्रतिष्ठा बना रही एक संस्था है, लेकिन इसके डेटा को लेकर कुछ सवाल इसलिए भी हैं क्योंकि रोज़गार दर में केवल ‘बेरोज़गार लेबर फोर्स के प्रतिशत’ को ही समझाया जाता है जबकि भारत में लेबर फोर्स की प्रतिभागिता दर को तवज्जो नहीं दी जाती, जो अपने आप में घट रही है.