IIT मुंबई में सुप्रीम कोर्ट ने दिया दलित छात्र को प्रवेश देने का निर्देश

नई दिल्‍ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आइआइटी मुंबई को मानवीय दृष्टिकोण अपनाने के लिए कहते हुए युवा दलित छात्र प्रिंस जयबीर सिंह को 48 घंटे के भीतर अपने संस्थान में सीट आवंटित करने का निर्देश दिया। यह छात्र क्रेडिट कार्ड काम नहीं करने की वजह से अपनी फीस जमा नहीं कर पाया था। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आईआईटी बाम्बे में एक दलित छात्र के लिए सीट बनाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग किया। कोर्ट ने कहा कि दलित छात्र की सीट के लिए किसी दूसरे छात्र की सीट ना ली जाए बल्कि इस प्रतिभावान दलित छात्र को उपयुक्त सीट से दाखिला दिया जाए। आइआइटी के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि कोई भी सीट खाली नहीं है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों से स्थिति के प्रति मानवीय दृष्टिकोण रखते हुए एक्स्ट्रा सीट देने को कहा है। 

मामले को मानवीय दृष्टिकोण से निपटाया जाए

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा, ‘इस अदालत के सामने एक युवा दलित छात्र है जो आइआइटी मुंबई में आवंटित एक मूल्यवान सीट को गंवाने की कगार पर है। याचिकाकर्ता की यात्रा उसे इलाहाबाद (प्रयागराज) से खड़गपुर और मुंबई ले गई और आखिर में राष्ट्रीय राजधानी ले आई। मामले के तथ्यों के मद्देनजर अगर युवा दलित छात्र को इस अदालत के द्वार से लौटा दिया गया तो यह उसके साथ न्याय का घोर उपहास होगा जिसे आखिर में इस अदालत में आना पड़ा।’ अदालत ने कहा कि अगर उसे इस वर्ष प्रवेश नहीं दिया गया तो वह आगे की प्रवेश परीक्षाओं में नहीं बैठ सकेगा क्योंकि वह दो लगातार प्रयासों में सम्मिलित हो चुका है। इस मामले में पीठ ने 18 नवंबर को टिप्पणी की थी, ‘कौन जाने 10-20 साल बाद वह हमारे देश का नेता हो।’

पीठ ने ज्वाइंट सीट एलोकेशन अथारिटी (जोसा) की ओर से पेश वकील से कहा कि उन्हें इस मुद्दे पर दृढ़ नहीं होना चाहिए और सामाजिक जीवन की वास्तविकताओं व जमीन पर व्यावहारिक कठिनाइयां को समझना चाहिए। पीठ ने कहा क‍ि छात्र के पास पैसे नहीं थे, फिर बहन को पैसे ट्रांसफर करने पड़े और फिर तकनीकी मुद्दे थे। लड़के ने परीक्षा पास कर ली। अगर यह उसकी लापरवाही होती तो हम आपसे नहीं पूछते…।

पीठ ने आगे कहा कि मामले को मानवीय दृष्टिकोण से निपटाया जाना चाहिए और छात्र को स्वीकार नहीं करना सिर्फ नौकरशाही है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा कि छात्र को अधर में नहीं छोड़ा जा सकता है। वह एक दलित लड़का है और अधिकारियों को जमीनी हकीकत को समझना होगा। कोर्ट ने अधिकारियों से छात्र से बात करने और कोई रास्ता निकालने को कहा है।

कोर्ट ने मामले को सुलझाने का तरीका खोजने के लिए कहा

जोसा ने पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि सभी सीटें भर दी गई हैं और कोई खाली सीट उपलब्ध नहीं है। शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए जोसा को छात्र के लिए एक सीट निर्धारित करने का निर्देश दिया।

तकनीकी खराबी के कारण फीस जमा करने में विफल रहा छात्र

लड़के के उत्कृष्ट ट्रैक रिकार्ड का हवाला देते हुए बेंच ने कहा कि अदालत किसी ऐसे उम्मीदवार की मदद के लिए नहीं आएगी, जो योग्य नहीं है। बेंच ने आदेश दिया कि किसी अन्य छात्र के प्रवेश को बाधित किए बिना लड़के को सीट आवंटित की जानी चाहिए। यदि (कोई अन्य) सीट खाली हो जाती है तो इस सीट का सृजन प्रवेश नियमित होने के अधीन होगा।

छात्र को 27 अक्टूबर को सिविल इंजीनियरिंग शाखा में आईआईटी बॉम्बे में एक सीट आवंटित की गई थी। याचिकाकर्ता ने 29 अक्टूबर को जोसा वेबसाइट पर लाग इन किया था और आवश्यक दस्तावेज अपलोड किए थे, लेकिन सीट स्वीकृति शुल्क का भुगतान करने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। उसकी बहन ने 30 अक्टूबर को उसे पैसे ट्रांसफर कर दिए और उसने फिर से कई बार भुगतान करने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा। छात्र के वकील ने पीठ को सूचित किया था कि वह तकनीकी खराबी के कारण फीस जमा करने में विफल रहा।

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