उत्तराखंड में दलित राजनीति पर क्या चल रहा है?

उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की हल्द्वानी से जारी की गई एक तस्वीर के बाद यह बहस शुरू हो गई है कि उत्तराखंड में दलितों को लेकर किसकी राजनीति कितनी खरी है? और कौन कितना सफल होता दिख रहा है?

इसको लेकर राजनीतिक विश्वलेषक अपने अपने मायने निकाल रहे हैं, लेकिन आज हम कुछ तथ्यों और घटनाओं के आधार पर इसकी पड़ताल कर लेते हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हल्द्वानी में कार्यक्रम में शामिल होने के बाद एक दलित परिवार के घर पहुंचे। नंद किशोर पार्टी के कार्यकर्ता हैं। पुष्कर सिंह धामी ने नंदकिशोर के घर पर भोजन किया। उन्होंने लौकी की सब्जी, रोटी, चावल और खीर खाई।

इस तस्वीर ने एक बार फिर इस सवाल का जन्म दे दिया कि उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी और हरीश रावत में से कौन दलित वोटर को साधने में कामयाब होते दिख रहे हैं।

आगे बढ़ने से पहले उत्तराखंड में दलित मतदाताओं का गणित समझ लें।

उत्तराखंड में 16 फीसदी दलित वोटर हैं, प्रदेश की 12 सीटें इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं।

कुल 22 सीटों पर दलित वोटर हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं, इसलिए सूबे में दलित वोटर को साधने के लिए तरह-तरह के पैंतरे आजमाए जा रहे हैं।

आपको याद होगा हरीश रावत ने भी हरिद्वार में मां गंगा से प्रदेश में दलित मुख्यमंत्री बनने की अपनी इच्छा का इजहार किया था।

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