नई दिल्ली। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के चेहते पाकिस्तान के इंटेलिजेंस चीफ (आइएसआइ) फैज हमीद की विदाई को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। इसमें एक बड़ा फैक्टर अमेरिका भी है। हालांकि, यह कहा जा रहा है कि पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा के उनके मतभेद और बिना मंजूरी के काबुल जाने के कारण उन्हें इस पद से हटाया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आइएसआइ चीफ फैज पिछले महीने बाजवा की मंजूरी लिए बगैर काबुल गए थे। फैज के इस कदम से अमेरिका समेत कई मुल्कों में पाकिस्तान की किरकिरी हुई थी। यह भी आरोप लगा कि पाकिस्तान की फौज और हुकूमत तालिबान को सहयोग कर रही है। आइए जानते हैं कि फैज के हटने में अमेरिका की क्या भूमिका रही है।
प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि पाकिस्तान सेना के प्रमुख बाजवा और फैज के बीच चला आ रहा गतिरोध आइएसएआइ प्रमुख पर भारी पड़ा। फैज इमरान के चहेते थे, इसलिए बाजवा उनको हटाने के लिए एक ठोस मौका खोज रहे थे। अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद फैज की काबुल यात्रा के दौरान बाजवा के हाथ एक सुनहरा अवसर मिल गया। फैज की काबुल यात्रा उनके लिए महंगी पड़ी। फैज की इस यात्रा पर अमेरिका ने भी अपनी गहरी आपत्ति दर्ज की थी। इसके पूर्व अमेरिका ने कहा था कि तालिबान सरकार के गठन में पाकिस्तान बड़ी भूमिका अदा कर रहा है। उस वक्त भी अमेरिका ने पाक को सख्त संदेश दिया था। यूएस ने कहा था कि इसका खामियाजा पाक को भुगतना पड़ेगा। पाकिस्तान और तालिबान के संबंधों को लेकर अमेरिकी सीनेट में एक बिल भी पेश किया गया है। इस बिल को लेकर पाक तिलमिलाया है।
फैज पर आरोप कि वह तालिबान नेताओं के संग सेरेना होटल में एक टी पार्टी में शामिल हुए थे। उन पर यह भी आरोप है कि उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत कायम करने में मदद की थी। खास बात यह है कि फैज प्रधानमंत्री इमरान की पसंद थे। वह अगले साल पाक आर्मी चीफ के दावेदार थे। फैज को आइएसआइ प्रमुख पद से हटा दिया गया और पेशावर कार्प्स कमांडर का चीफ बनाकर भेजा गया है। पाकिस्तान में इस पर सियासत शुरू हो गई है। यह कहा जा रहा है कि पाकिस्तान ने अमेरिका के दबाव में आकर इस काम को किया है।
सेना प्रमुख और आइएसआइ प्रमुख के बीच मतभेद की चर्चा करीब तीन वर्षों से है। रावलपिंडी में सेना के एक हाउसिंग प्रोजेक्ट को लेकर दोनों के बीच मतभेद शुरू हुए थे। इमरान के करीबी होने के कारण बाजवा को तीन वर्ष का एक्सटेंशन दिया और यह रस्साकसी मुल्क के सामने आ गई। मतभेद के बाद फैज कई बार बाजवा को भरोसे में लिए बगैर फैसले करने लगे थे।
अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान ने 15 अगस्त को काबुल के साथ ही पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। हालांकि, अमेरिका समेत दुनिया के कई मुल्कों को यह शक था कि पाक फौज और आइएसआइ तालिबान की पर्दे के पीछे से मदद कर रही है। सितंबर की शुरुआत में जनरल फैज हमीद चुपचाप काबुल पहुंचे। काबुल के सेरेना होटल में तालिबान के आला नेताओं के साथ उन्होंने चाय पी। संयोग से इसी होटल में ब्रिटेन की एक महिला जर्नलिस्ट मौजूद थी। महिला पत्रकार ने फैज के फोटो लिए और कुछ सवाल भी किए। इसके जवाब में फैज ने सिर्फ इतना कहा- आल इज वेल।
हाल में अमेरिकी सीनेट में पेश इस बिल से पाकिस्तान बेचैन है। दरअसल, सीनेट में यह बिल रिपब्लिकन पार्टी के 22 सीनेटर्स ने पेश किया है। यह बिल अफगानिस्तान में अमेरिका के आतंकवाद निरोधी अभियान और उसकी जवाबदेही के लेकर है। इस विधेयक में बाइडन प्रशासन से अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज को तेजी से निकालने के फैसले पर जवाब मांगा गया है। दूसरे, अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका की जांच की मांग की गई है। बिल की दूसरी मांग से पाकिस्तान बेचैन है। इस बिल में यह मांग की गई है कि अफगानिस्तान के तालिबान में नियंत्रण से पहले और बाद में पाकिस्तान की भूमिका की स्वतंत्र जांच की जाए। इसके साथ पंजशीर घाटी में तालिबान के हमले को लेकर भी पाकिस्तान की जांच कराने की मांग की गई है।