देहरादून। अलग राज्य (उत्तराखंड) की मांग को लेकर बस से दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों के साथ दो अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा में जो घटना हुई, उसे याद कर राज्य आंदोलनकारी आज भी दर्द से भर जाते हैं। आंदोलनकारी 26 साल बाद भी इस जख्म को नहीं भर पाए हैं। एक अक्टूबर की वह रात और दो अक्टूबर की सुबह दमन, बल प्रयोग और अमानवीय हदों को पार करने वाली साबित हुई।
कोदा-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे के नारे हवा में तैर रहे थे। हर कोई इस आंदोलन में किसी न किसी रूप में जुड़ा था। दो अक्टूबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करना तय हुआ तो गढ़वाल और कुमाऊं से बसों में भरकर लोग दिल्ली के लिए रवाना हुए। तत्कालीन सरकार ने पुलिस के माध्यम से आंदोलनकारियों को मोहंड, नारसन बार्डर पर बेरिकेड लगाकर रोका, लेकिन काफी संख्या में आंदोलनकारियों के आंदोलन के आगे प्रशासन बेबस सा पड़ गया। राज्य आंदोलनकारियों का मुकाबला मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर पुलिस प्रशासन से हुआ। यहां फायरिंग, बेबसों पर कहर, लाठीचार्ज, पथराव हुए। बच्चे, जवान के साथ ही महिलाओं के साथ जिस तरह अभद्रता हुई, उस मंजर को राज्य आंदोलनकारी आज भी भुला नहीं पाए हैं। आंदोलनकारियों के लिए आज भी दुख इस बात का है कि राज्य बनने का सपना जरूर पूरा हो गया, लेकिन राज्य गठन से पूर्व जो सपने देखे थे वह आज भी सपने ही बने हैं।
वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी सुशीला बलूनी ने बताया कि इस दिन को हम कैसे भूल सकते हैं। मुझे 102 डिग्री बुखार था। हम जैसे ही रामपुर तिराहा पहुंचे। पुलिस ने आगे से सभी को पीटना शुरू कर दिया। बिना किसी चेतावनी के गोलियां बरसानी शुरू कर दी। चारों तरफ पुलिस ने घेर दिया था। 15 से 16 बच्चों की जान चली गई थी। महिलाओं के साथ जिस तरह अभद्रता हुई, कहा नहीं जा सकता। महिलाओं ने यह रात रघुपति राघव राजा राम आदि भजन कर बिताई और सुबह को वापस देहरादून लौट गए राज्य आंदोलनकारी प्रदीप डबराल ने बताया कि तत्कालीन सरकार की दमन और निरंकुशता का वीभत्स दृश्य कभी न भूलने वाला है। आंदोलनकारियों पर रामपुर तिराहा से पहले ही पुलिस ने लाठियां बरसानी शुरू कर दी थी। कोई भी ऐसी बस नहीं थी, जिसके शीशे न टूटे और अंदर बैठे आंदोलनकारियों पर चोट न आई हो। सभी चिल्ला रहे थे कि हमें आगे जाने दो, लेकिन पुलिस ने एक न सुनी और बच्चे, महिला, बुजुर्ग जो भी बाहर निकलता उसको जमकर पीटा। कई शहीद हुए तो कई घायल। अफसोस की बात यह है कि आज भी इस घटना के दोषियों को सजा नहीं मिली। प्रदेश अध्यक्ष उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच जगमोहन सिंह नेगी ने बताया कि हम लोग एक अक्टूबर रात को दर्शनलाल चौक से बसों में बैठकर दिल्ली कूच के लिए निकले। मोहंड, भगवानपुर, नारसन पर पुलिस ने बेरिकेड लगाकर रोकना शुरू कर दिया था, लेकिन काफी संख्या में होने के चलते हम आगे बढ़ते गए। सुबह चार बजे रामपुर तिराहा पहुंचे तो यहां काफी भीड़ थी। ग्रामीणों से पता चला कि रात को पुलिस ने आंदोलनकारियों को बर्बरता से पीटा, जिसमें कईयों की जान चली गई। आगे बढ़ ही रहे थे कि पुलिस और सादी वर्दीधारी व्यक्तियों ने बसों पर पथराव शुरू कर दिया। बिना चेतावनी दिए गोलियां बरसाई। भगदड़ मच गई और कई शहीद हो गए।
राज्य आंदोलनकारी सुरेश नेगी ने कहा कि जब भी दो अक्टूबर आता है तो रामपुर तिराहा का वो मंजर याद कर रोना आता है। शांतिपूर्ण ढंग से दिल्ली कूच कर रहे आंदोलनकारियों पर रामपुर तिराहा के पास गोलियां बरसाई गई, लाठियों से पीटा गया और महिलाओं के साथ अभद्रता की गई। आज भी अपने सपने के उत्तराखंड के लिए लड़ रहे हैं।