अंतर्रराष्ट्रीय योग दिवस और योग का महत्व

कर्नल आदि शंकर मिश्रा सेवा निवृत्त, लखनऊ
कर्नल आदि शंकर मिश्रा सेवा निवृत्त लखनऊ

सर्वे भवन्तु सुखिन :
सर्वे संतु निरामया :,
सर्वे भद्रानि पश्यन्ति,
मा कश्चिद दुःखभागभवेत।

सभी सुखी हों, पतन्जलि का यह योग सूत्र व
“ॐ सहनाववतु सहनौ भुनक्तु, सहवीयंकरवावहै तेजस्विना वधीतमस्तु, मा विद्वषावहै” के अनुसार योग जोड़ने की क्रिया है, जोड़ने की कला है, जोड़ने का शास्त्र व विज्ञान है, अध्यात्म योग, कर्म योग व राज योग विधाये है योग की ।

योग, मन, शरीर और आत्मा की एकता को सक्षम बनाता है। योग के विभिन्न रूपों से हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को अलग-अलग तरीकों से लाभ मिलता है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को इस अनूठी कला का आनंद लेने के लिए मनाया जाता है।

माना जाता है कि भारतीय पौराणिक युग से योग की जड़े जुडी हुई हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह भगवान शिव थे जिन्होंने इस कला को जन्म दिया। शिव, जिन्हें आदि योगी के रूप में भी माना जाता है, को दुनिया के सभी योग गुरुओं के लिए प्रेरणा माना जाता है।

सामान्यत तौर पर यह माना जाता है कि यह उत्तर भारत में सिंधु-सरस्वती सभ्यता थी जिसने 5000 साल पहले इस शानदार कला की शुरूआत की थी। ऋग्वेद में पहली बार इस अवधि का उल्लेख किया है। हालांकि योग की पहली व्यवस्थित प्रस्तुति शास्त्रीय काल में पन्तजलि द्वारा की गई है।

21 जून को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्राचीन भारतीय कला के लिए एक अनुष्ठान है। हमारे दैनिक जीवन में योग को जन्म देने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है। यह हमारे तनावपूर्ण जीवन के लिए एक बड़ी राहत प्रदान करता है।

आज विश्व योग दिवस पर हम जो योग कर रहे हैं, आसन, व्यायाम व प्राणायाम ! उसके इतर भी योग क़र्म हैं । एक किसान बैलों के साथ हल जोड़ कर जो कर्म कर रहा है यह भी योग है, एक मजदूर और राजगीर मिलकर ईट पत्थर जोड़ कर दीवार खड़ी करते हैं क्या यह योग नहीं, क्या एक कुम्भकार मिट्टी पानी मिलाकर चाक के साथ जो कर्म कर रहा है वह योग नहीं है, मजदूर व कर्मचारी एक दूसरे के साथ मिलकर जो उत्पादन करते हैं क्या यह योग नहीं ? मेरा मत है यही कर्म योग है। अगर ऋषि मुनि तपस्या व साधना कर के भगवद प्राप्ति की अपेक्षा करते है वह अध्यात्म योग है, शारीरिक सुरक्षा के लिये व्यायाम या आसन व प्राणायाम करना राज योग है।

अब सोचिये दुनिया में योग कौन नहीं कर रहा ? धर्म, जाति, वर्ण, समुदाय व देश, समाज के नाम पर योग विद्या में भेद करना योग नहीं है, योग किसी धर्म, जाति, समाज या देश की सम्पत्ति नहीं है, यदि विश्व ने मान्यता दी है तो इसके पीछे किसी धर्म या देश का एकाधिकार मानकर नहीं, ग्राह्यता के आधार पर इसे मनाया गया।जहाँ तक कुछ व्यक्तियों के इस कार्यक्रम में ना शामिल होने को लेकर कुछ कहा जाय तो वह योग नहीं वियोग है। योग में + (plus ) होता है, (-) minus नहीं, यदि किसी को योग कार्यक्रम में न शामिल होने के लिये बुरा भला कहा जा रहा है तो योग को महत्व नहीं दिया जा रहा, इसमें तो योग की जगह विशुद्ध वियोग है ।

योगेश्वर श्री कृष्ण ने कहा था कि ‘एकोहम द्वितियोनास्ति’ अर्थात सब तो उसी में निहित है, फिर किसी के कर्म को उसके अनुसार करने या ना करने को योग से विरत कैसे कहा जा सकता है । यहाँ हमारे हिंदू धर्म के बारे में तमाम बातें कहीं जा रही है, क्या हिंदू धर्म सबको आत्मसात करने की सामर्थ्य नहीं रखता ? या यह कहना कि जिसने विश्व योग दिवस पर योग कार्यक्रम में भाग नहीं लिया वह हिंदू नहीं, वह भारतीय नहीं! हमारे धर्म में इस तरह की संकीर्णता कभी नहीं थी।देश के प्रधान मंत्री माननीय मोदी जी ने, जो इस कार्यक्रम के सूत्रधार हैं, स्वयं कहा है कि “योग अंग मर्दन की क्रिया मात्र नहीं है, योग शरीर, मन व आत्मा को जोड़ने की विद्या है, योग एक को दूसरे से, आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की साधना है” फिर उनके इस मूल मंत्र को नकार कर योग की महिमा व महत्व को कम नहीं करना चाहिए । किसी की बुराई करना यौगिक क्रिया नहीं है, उसको जोड़ने का काम योग है न कि उसे अपने से दूर करना योग है। सभी सूखी हों, सभी निरोग, निरामय हों, यही पतन्जलि के योग शास्त्र का मूल मंत्र है ।
“योग़क्षेमंवहाम्यहं।”

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