सद्गुरूदेव की दृष्टि ‘दिव्य’ तथा ‘पारदर्शी’ होती है- साध्वी विदुषी जाह्नवी भारती जी

देहरादून। संसार से मनुष्य कुछ भी छुपा सकता है, अपनी चालाकी से अपने मन के भीतर…