बीजिंग। चीन में यारलुंग सैंगपो नदी पर पनबिजली परियोजना बनाने को लेकर निचले नदी क्षेत्र वाले देशों की नदी परियोजनाओं पर बुरा असर पड़ने की आशंका जताई गई है। भारत और बांग्लादेश में ताजे पानी का यह अहम स्रोत है। ब्रहमपुत्र के ऊपरी इलाकों में बहने वाली यारलुंग सैंगपो नदी का बहाव दक्षिण-पूर्वी कैलास पर्वत से लेकर तिब्बत स्थित मानसरोवर तक है। यह निचले इलाकों में दक्षिणी तिब्बत घाटी से होते हुए उतरती है। यह भारत में अरुणाचल प्रदेश और असम में ब्रह्मपुत्र नदी के रूप में उतरने से पहले ग्रैंड कैनन दर्रे से गुजरती है। इससे ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह प्रभावित होगा। यह नदी बांग्लादेश में उतरने पर जमुना कहलाती है। भारत में पूर्वोत्तर के दोनों राज्य और बांग्लादेश में आकर यारलुंग सैंगपो तब ब्रह्मपुत्र नदी कहलाती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि चीन में बनने वाली कई छोटी-बड़ी पनबिजली परियोजनाओं के चलते भारत और बांग्लादेश में जल स्तर और उससे संबंधित अन्य बातों को लेकर खतरा मंडरा रहा है। टोरंटो के थिंक टैंक इंटरनेशनल फोरम फार राइट्स एंड सिक्योरिटी (आइएफएफआरएएस) ने आग्रह किया कि पनबिजली बांधों को बिना ऊपरी धाराओं और निचली धाराओं के ईको-सिस्टम के बारे में विचार किए बनाने की तैयारी है। इन क्षेत्रों में बांध बनाए जाने से आसपास और सुदूर क्षेत्रों में अहम आर्थिक और पर्यावरण संबंधी संकट खड़ा हो जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन अपने फायदे के लिए यारलुंग सैंगपो नदी यानी ब्रह्मपुत्र नदी पर अपना पूरा नियंत्रण चाहता है। इससे भारत में ब्रह्मपुत्र नदी पर निर्भर राज्य अरुणाचल प्रदेश व असम और बांग्लादेश पर राजनीतिक और पर्यावरण के क्षेत्र में बेहद बुरा असर पड़ेगा।