भारतीय संवत् व नववर्षोत्सव का स्वागत हमारी सांस्कृतिक क्रांति को नई बुलंदियाँ देगा

-हिन्दू नववर्ष 2022ः जानिए भारतीय नववर्ष को मनाने के पीछे ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक रहस्य

देहरादून । सम्भवतः आपमें से बहुत से पाठकगण यह शुभकामना पढ़कर चौंक गए होंगे। यही सोचकर कि यह तो अप्रैल का माह है। फिर नववर्ष कैसा!! पर क्या आप जानते हैं, भारत की मिट्टी से उठती सौंधी खुशबू, आकाश के नक्षत्र-तारे, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड आपको इस महीने की 1 तारीख को नववर्ष की बधाइयाँ दे रहा है? भारत का गौरवमयी अतीत, हमारे महामहिम मनीषी, पूर्वज और उनकी ज्ञान-विज्ञान सम्पन्न धरोहरें- सभी इसी दिन हम पर नववर्ष के आशीष लुटा रहे हैं! भारतीय विक्रम-संवत् के अनुसार इस चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी 1 अप्रैल को ही हमारा और आपका अपना, स्वदेशी नया साल शुरु हो रहा है।
संभवतः आपको यह भी न पता हो कि हमारे भारत का एक निजी कैलन्डर और काल-गणना भी है, जिसे ‘भारतीय संवत्सर’ या ‘विक्रमी संवत्’ कहते हैं। लगभग 2054 वर्ष पूर्व भारत के एकमहान सम्राट महाराज विक्रमादित्य ने प्राचीनतम अथवा वैदिक काल-गणना के आधार पर इस संवत् की स्थापना की थी। यह कैलन्डर शुरु से ही 12 माह का था तथा सूर्य और चंद्रमा- दोनों पर आधारित एक सर्वोत्तम वैज्ञानिक नमूना था। विश्व के सभी कैलन्डरों से पूर्व इस विक्रमी संवत्सर का निर्माण हो गया था। विक्रम संवत् के अनुसार नववर्ष का श्री गणेश चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को माना गया है। ब्रह्माण्ड पुराण का वर्णन है कि यही वह दिन है, जब सृष्टि सृजन की लीला शुरु हुई।
भारतीय संवत् के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर नवीनता की छटा अपने आप ही प्रत्यक्ष हो जाती है। एक नहीं, अनेक युक्तियाँ इस दिन को वर्ष का पहला दिवस घोषित करती हैं।
चैत्र शुक्ल के आते-आते कड़कती ठंड के तेवर ढीले पड़ चुके होते हैं। बर्फीली हवाएँ बसन्त की बयार बन जाती हैं। श्री कृष्ण गीता में कहते हैं- ‘समस्त ऋतुओं में मैं बसन्त हूँ।’ चैत्र शुक्ल को इसी सर्वप्रिय, सर्वश्रेष्ठ ऋतुराज का पूरी प्रकृति पर राज हो जाता है। इसी के साथ प्रकृति का कण-कण, नव उमंग, उल्लास और प्रेरणा के संग, अंगड़ाई भर उठता है। यह चेतना, यह जागना, यह गति- यही तो नववर्ष के साक्षी हैं!
सामाजिक चेतना- उत्सवमयी! वैसे भी देखा जाए, तो चैत्र नक्षत्र के चमकते ही कश्मीर से लेकर केरल तक, भारत में उत्सवों के नगाड़े बज उठते हैं। इसी दिन नवरात्रों का भी शुभारम्भ होता है और भारतभर में माँ जगदम्बा के जयकारे गूँज उठते हैं। अतः चैत्र शुक्ल पर ही भारत की सामाजिक चेतना नववर्ष में प्रवेश करती है।
अध्यात्म बल की धनी! चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ‘शुभ मुहूर्त’ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस दिन नक्षत्रों की दशा, स्थिति और प्रभाव उत्तम होता है। चैत्र शुक्ल को विशेष रूप से प्रजापति और सूर्य नामक तरंगों की बरखा होती है। ये सूक्ष्म तरंगें अध्यात्म बल की बहुत धनी और उत्थानकारी हुआ करती हैं।
अतः यदि इस शुभ घड़ी में सुसंकल्पों के साथ नए साल में कदम रखा जाए, तो कहना ही क्या!
भारतीय संवत् व उसके आधार पर नववर्षोत्सव का स्वागत- हमारे विजयगीतों के सुरों को और सुरीला करेगा। हमारी सांस्कृतिक क्रांति को नई बुलंदियाँ देगा। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सभी पाठकों को भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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