देहरादून। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की देहरादून शाखा निरंजनपुर में स्थित आश्रम के प्रांगण में प्रातः 10:00 बजे से महाशिवरात्रि के कार्यक्रम को मनाया गया। सद्गुरु श्री आशुतोष जी महाराज जी के शिष्य व शिष्याओ के माध्यम से सु मधुर भजनों का गायन हुआ भजनों की श्रंखला में कुछ भजन इस प्रकार हैं…. जय हो भोले…. ,पार्वतीबोली शंकर से….., मेरे भोले की सवारी…. शिव नाम की गूंज माला……।
तत्पश्चात आश्रम की साध्वी बहनों के माध्यम से भजनों के भीतर स्थित गूढ़ रहस्यों को जाना व् कार्यक्रम के भीतर बताया गया कि महाशिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष कीचतुर्दशी की अंधकारमयी रात को आती हैं।
महर्षि बताते हैं कि यह रात साधारण रात नहीं है, विशेषता विशेष है, यही कारण है, कि हर साल इस बेला पर भारतीय जनता में भक्ति -भावनाओं का ज्वार उमर उठता है। अर्चना- आराधना के स्वर गुंजायमान होते हैं । शिवाले धूप – नवेद से सुगंधित हो जाते हैं । शिव उपासना का यह ढंग ‘कौलाचार’ कहलाता है । यह बहरी पूजा होती है इसमें बाहरी साधनों से महादेव की बाहरी मुहूर्त या लिंग का बाहरी पूजन किया जाता है , महापुरुषों के अनुसार मात्र यह पूजन करना पर्याप्त नहीं है, यह तो उपासना की प्रथम सीढ़ी है, भगवान शिव का वास्तविक पूजन तो अंतर जगत में संपन्न होता है , जिसे शिव ग्रंथों में ”समयाचार” कहां जाता है, इसमें ‘आत्मा’ (समय) ‘आचार’ अर्थात आराधना करती है, यह आराधना भीतर सहस्त्रदल कमल में विराजमान सदाशिव की परलोकिक साधना से होती है।
रात्रि का महत्व क्या है
इस अंधकारमयी रात्रि की यह विशेषता है कि इसमें सूर्य और चंद्र एक- दूसरे में वास करते हैं