उत्तराखंड मे चुनावी प्रचार खत्म ये विधानसभा सीट बनी प्रत्याशियों की नाक का सवाल

देहरादून: उत्तराखंड चुनाव का प्रचार शांत हो चुका है. कल वोटिंग का दिन है. 70 सीटों पर जनता 70 उम्मीदवारों की किस्मत तय करने जा रही है. हर सीट पर अलग लड़ाई है, रोमांचक समीकरण हैं और बड़े चेहरों की टक्कर है. आम आदमी पार्टी के चुनावी मैदान में आ जाने से कई सीटों पर तो त्रिकोणीय मुकाबला भी देखने को मिल रहा है. पार्टी ने सीएम उम्मीदवार भी ऐसा खड़ा किया है कि जिसका वोटबैंक पहाड़ी राज्य में कई बार हार-जीत का अंतर तय कर जाता है. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि इस बार उत्तराखंड चुनाव में कई सीटों पर महामुकाबला देखने को मिल रहा है. एक नजर उन सभी रोमांचक सीटों पर डालते हैं-

लालकुंआ विधानसभा सीट

नैनीताल जिले की लालकुंआ सीट पर इस बार सबसे जोरदार मुकाबला देखने को मिल रहा है. एक तरफ मैदान में खड़े हैं कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे पूर्व सीएम हरीश रावत, तो वहीं उन्हें कांटे की टक्कर दे रहे हैं बीजेपी जिला पंचायत सदस्य मोहन बिष्ट. इस बार एक निर्दलीय ने भी यहां से चुनावी ताल ठोक समीकरणों को बदल दिया है. कांग्रेस की पुरानी सिपाही संध्या डालाकोटी लालकुंआ सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं. पहले इस सीट से कांग्रेस ने उन्हें ही अपना उम्मीदवार बनाया था. लेकिन फिर जब रामनगर सीट पर हरीश रावत की उम्मीदवारी पर सवाल उठने लगे तो 24 घंटे के अंदर उन्हें लालकुंआ सीट पर शिफ्ट कर दिया गया, ऐसे में संध्या डालाकोटी का पत्ता कट गया. अब संध्या लोगों का आशीर्वाद लेने के लिए निर्दलीय मैदान में उतर गई हैं.

वैसे इस सीट से बीजेपी ने जिन मोहन बिष्ट पर अपना दांव चला है, चुनावी पंडित इसे भी एक मजबूत रणनीति मान रहे हैं. असल में लालकुंआ सीट के लिए मोहन बिष्ट स्थानीय नेता हैं. वे इसी जिले से पंचायत सदस्य भी हैं, ऐसे में जमीनी हकीकत से उनका जुड़ाव बना रहता है और लोगों के बीच उनका संपर्क भी मजबूत है. वहीं कांग्रेस से नाराज होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहीं संध्या डालाकोटी मातृशक्ति को एक बड़ा मुद्दा बना रही हैं. वे अपने अपमान को महिलाओं के अपमान से जोड़ रही हैं. यहां पर ये भी जानना जरूरी है कि इस सीट पर बागी का सामना सिर्फ कांग्रेस नहीं कर रही है, बल्कि बीजेपी भी कर रही है. टिकट ना मिलने की वजह से पवन चौहान निर्दलीय मैदान में उतर गए हैं. वे मान रहे हैं कि यहां का शहरी मतदाता उनके साथ खड़ा है.

लेकिन इन सभी समीकरणों के बीच ‘बाहरी’ होने के बावजूद कांग्रेस की तरफ से हरीश रावत ने जोरदार प्रचार किया है. इस बार वे इस सीट पर ऐसी ताकत झोंक रहे हैं कि उनका पूरा दिन किसी भी क्षेत्र में क्यों ना बीते, लेकिन रात उनकी लालकुंआ में ही निकलती है. वे इस बार हर हाल में ये सीट निकालना चाहते हैं. विपक्ष के बाहरी वाले आरोप पर भी वे सिर्फ अतिथि देवो भव: कह रहे हैं.

लालकुआं विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरणों की बात करें तो इस विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण और राजपूत बिरादरी के मतदाताओं की बहुलता है. अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के मतदाता भी लालकुआं विधानसभा सीट का चुनाव परिणाम निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

गंगोत्री विधानसभा सीट

उत्तराखंड की राजनीति में जब भी मिथक वाला पहलू उठाया जाता है तो जहन में सबसे पहले गंगोत्री विधानसभा सीट आती है. उत्तरकाशी जिले की गंगोत्री सीट काफी दिलचस्प है. यहां पर मुकाबला तो हमेशा कड़ा रहता ही है, इसके अलावा एक ऐसा मिथक भी है कि यहां से जो भी चुनाव जीत जाता है तो उसकी सरकार बनना तय रहता है. ये वो ट्रेंड है जो आज से नहीं बल्कि पूरे 60 साल से चलता आ रहा है. इसी वजह से इस बार गंगोत्री सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है. यहां बात सबसे पहले आम आदमी पार्टी के सीएम उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल की आएगी क्योंकि उनका चुनाव लड़ना दोनों कांग्रेस और बीजेपी को चिंता में डाल गया है. वे पहली बार चुनाव जरूर लड़ रहे हैं, लेकिन उनका आर्मी बैकग्राउंड उन्हें ‘फौजी वोटर’ के बीच लोकप्रिय बनाता है. वहीं आम आदमी पार्टी दावा कर रही है कि कोठियाल ने अपनी संस्थान के जरिए युवाओं के लिए काफी काम किया है, ऐसे वो वर्ग भी उनके साथ जा सकता है.

बीजेपी की बात करें तो इस बार पार्टी ने एक नए चेहरे पर दांव चल दिया है. उसकी तरफ से इस सीट से सुरेश चौहान को मैदान में उतारा गया है. भाजपा ने निवर्तमान विधायक गोपाल रावत के निधन के बाद सुरेश चौहान में अपना भरोसा जताया है. खास बात ये है कि इस बार इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार के लिए खुद स्वर्गीय सीडीएस बिपिन रावत के भाई रिटायर्ड कर्नल विजय रावत प्रचार कर रहे हैं. वे कर्नल अजय कोठियाल की लोकप्रियता को काउंटर करने के लिए मैदान में उतरे हैं.

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