देहरादून। संस्कार शब्द का मूल अर्थ है, ‘शुद्धीकरण’। भारत में संस्कारों का मनुष्य के जीवन में सदैव ही विशेष महत्व रहा है। इसलिए यह आवश्यक है कि बचपन से ही बच्चों में संस्कारों का पोषण करना अति आवश्यक है, जिससे वे बड़े होकर एक अच्छे नागरिक बने तथा संस्कारों से अपनी सहज प्रवृतियों का पूर्ण विकास करके अपना और समाज दोनों का नवनिर्माण कर सकें। मंथन- संपूर्ण विकास केंद्र, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से संस्थापित एवं संचालित एक सामाजिक प्रकल्प है, जो अनेक वर्षों से समाज के अभावग्रस्त बच्चों को मूल्याधारित और निशुल्क शिक्षा प्रदान कर उनके व्यक्तित्व का संपूर्ण रूप से विकास करने में संलग्न है।
इसी श्रृंखला में मंथन-संपूर्ण विकास केंद्र की ओर से दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की विभिन्न शाखाओं जैसे गुरुग्राम, गाजियाबाद, मेरठ, जोधपुर, तथा दिल्ली स्थित विकासपुरी, पीतमपुरा, रोहिणी सेक्टर-15, पटेल नगर, कड़कड़डूमा एवं नेहरू पलेस अंतर्गत बच्चों के लिए ‘संस्कारशाला’ कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का संचालन दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के प्रचारकों ने किया। जिसमें लगभग 600 से अधिक बच्चों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। कार्यशाला का आरंभ नमस्ते मुद्रा में बैठ कर ओम् के उच्चारण से किया गया तथा नमस्ते मुद्रा एवं ओम् के उच्चारण की व्याख्या को भी बच्चों के समक्ष रखा गया। कार्यशाला के तहत विभिन्न रूचिप्रद क्रियाओं का संचालन किया गया। बच्चों ने बढ़-चढ़ कर कई समूह चर्चाओं जैसे ऐतिहासिक पात्र, स्वतंत्रता सेनानी, असली नायक या काल्पनिक व्यक्तित्व, भारतीय संस्कृति या पश्चिमी संस्कृति आदि विषयों में भाग लिया एवं अपने विचारों को सभी के समक्ष सांझा किया। इसके अतिरिक्त बच्चों को वैदिक शिक्षाओं की नैतिकता, मूल्यों एवं सही आचार-विचार से भी परिचित कराया गया जिससे कि सभी बच्चे नेक और गुणी तरीकों से जीवन यापन कर सके। कार्यशाला के अंत में सभी ने गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी का धन्यवाद दिया जिनकी कृपा से सभी को प्रेरणादायक विचार प्रदान किये गए तथा संस्करशाला का सफलतापूर्वक आयोजन संभव हुआ।