खटीमा का दुर्ग लगातार मजबूत कर रहे पुष्कर

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार खटीमा का दुर्ग मजबूत कर रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उनको कड़ी चुनौती काँग्रेस से मिली थी। इस बार वह हालात को पहले ही सुकूनदेह करने की कोशिशों में जुटे हैं। इसके लिए वह नेपाल से एकदम सटी इस विधानसभा क्षेत्र में दनादन शिलान्यास कर रहे। योजनाओं के लोकार्पण को तवज्जो दे रहे। अरबों रूपये की योजनाओं के ऐलान कर चुके हैं। लोगों के बीच बगैर बताए भी पहुँच के उनका दिल जीतने की कोशिश कर रहे। साफ है कि वह खुद पर उन नेताओं जैसा ठप्पा नहीं चाहते हैं, जो आशंकित हो के हर बार नई विधानसभा तलाशते हैं।

पुष्कर के पास अगर आधा दिन भी खाली हो तो उसका इस्तेमाल वह अपनी विधानसभा के लिए कर रहे। कई बार ऐसा हो चुका है, जब उनके आधिकारिक कार्यक्रम में कुछ और होता है। वह खटीमा होते हैं। सियासी तौर पर उनका अनुभव कहता है कि चुनाव आखिर चुनाव होते हैं। इसको जरा सी भी असावधानी से लेने पर लेने के देने पड़ सकते हैं। साल 2012 में बीजेपी सरकार के मुखिया BC खंडूड़ी तथा 2017 में काँग्रेस सरकार के सरताज हरीश रावत की दो-दो सीटों से जबर्दस्त शिकस्त उनके सीखने के पाठ्यक्रम में शामिल है।

पुष्कर को घायल शेर सरीखा कहा जा सकता है। बीजेपी के अंदर की हकीकत और सियासत से वह बेहद अच्छी तरह वाकिफ हैं। उनको ये बताना जरूरी नहीं है कि आखिर किस वजह से वह दो-दो बार त्रिवेन्द्र और तीरथ मंत्रिपरिषद में शामिल होने से रह गए। बड़ी उम्र वाले दिग्गजों को उनसे खुद के खत्म होने का खतरा है। हम उम्र को लगता है कि पुष्कर जितना बेहतर करेंगे, उनके लिए हालात सियासी रूप से उतने बदतर होंगे। बात मुख्यमंत्री पद की लड़ाई की हो रही। उनको ले के भी उड़ाया जा रहा कि वह शायद डीडीहाट से लड़ जाएँ। खटीमा छोड़ सकते हैं।

इसके चलते बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और अभी कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल भी खींचे-खींचे और खफा-खफा से दिखते हैं। उनको लगता है कि उन्हें जबरन सियासत से रिटायर करने की कोशिश चल रही। मुख्यमंत्री के करीबियों के अनुसार इसकी संभावना मजबूत होती तो खटीमा में इतना वक्त मुख्यमंत्री न लगाते। एक बात और। अपनी मौजूदा विधानसभा क्षेत्र छोड़ के अन्य से लड़ने वालों की छवि और प्रतिष्ठा अच्छी नहीं मानी जाती है। मुख्यमंत्री ऐसा जोखिम कभी नहीं लेंगे।

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