वक्फ बोर्ड को भारत में रेलवे और रक्षा विभाग के बाद तीसरा सबसे बड़ा भूमि धारक कहा जाता है। वक़्फ़ एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ होता है ख़ुदा के नाम पर अर्पित वस्तु-संपत्ति; चाहे वह चल हो या अचल, मूर्त या अमूर्त, ख़ुदा को इस आधार पर दान करना ताकि अंतरण से जरूरतमंदों को लाभ हो सके। वक्फ से होने वाली आय आमतौर पर शैक्षणिक संस्थानों, कब्रिस्तानों, मस्जिदों और आश्रय गृहों को निधि देती है। वक्फ बोर्ड एक कानूनी इकाई है जो संपत्ति अर्जित करने, उसे रखने और हस्तांतरित करने में सक्षम है। यह मुकदमा करने और न्यायालय में मुकदमा किये जाने दोनों में सक्षम है। यह वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन करता है, खोई हुई संपत्तियों को वापस प्राप्त करता है और बिक्री, उपहार, बंधक ऋण या गिरवी कर्ज, विनिमय या पट्टे के माध्यम से अचल वक्फ संपत्तियों के हस्तांतरण को मंजूरी देता है, जिसमें बोर्ड के कम से कम दो-तिहाई सदस्य लेन देन के पक्ष में मतदान करते हैं। एक बार जब किसी संपत्ति को वक्फ घोषित कर दिया जाता है तो वह अहस्तांतरणीय हो जाती है और ईश्वर के प्रति एक धर्मार्थ कार्य के रूप में स्थायी रूप से सुरक्षित रहती है। भारत में वक्फ को वक्फ अधिनियम, 1995 द्वारा विनियमित किया जाता है। संसद ने वक्फ बोर्ड के काम काज में जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाने के लक्ष्य के साथ वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करने के लिये वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश कर दिया है। ये संशोधन विधेयक वक्फ बोर्ड की अनियंत्रित शक्ति को कम करने के लिये वक्फ अधिनियम, 1995 के कुछ प्रावधानों को हटाने का प्रयास करता है, जो वर्तमान में उन्हें आवश्यक जाँच के बिना किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित करने की अनुमति देता है।
इस संशोधन विधेयक को पेश करने के संदर्भ में सरकार का दावा है कि इससे वक़्फ़ बोर्ड के प्रबंधन में सुधार होगा एवं इसके साथ ही इस विधेयक का उद्देश्य वक़्फ़ सम्पत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना है, इससे भ्रष्टाचार और अन्य अनियमितताओं पर नियंत्रण पाना है। विधेयक के माध्यम से वक़्फ़ सम्पत्तियों के विकास और संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सकता है एवं यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा सकता है कि वक़्फ़ सम्पत्तियों का उपयोग समुदाय के लाभ के लिए किया जाए। विधेयक के जरिए वक़्फ़ संपत्तियों से जुड़े कानूनी मामलों को सुलझाने और विवादों के निपटारे के लिए त्वरित और प्रभावी प्रावधान किए जा सकते हैं। इसके साथ ही इस विधेयक के क़ानून बनने से न्यायिक प्रक्रिया को सरल और तेज बनाया जा सकता है। सरकार का तर्क है कि वक़्फ़ बोर्ड की संरचना में सुधार के माध्यम से इसकी कार्यक्षमता और दक्षता को बढ़ाया जा सकेगा, जिस से वह अपने उद्देश्यों को और बेहतर तरीके से पूरा कर सकेगा। सबसे महत्वपूर्ण इस विधेयक के क़ानून बनने से वक़्फ़ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए सरकारी निगरानी और हस्तक्षेप को बढ़ाने का प्रावधान किया जा सकता है। इससे वक़्फ़ संपत्तियों का सही उपयोग सुनिश्चित किया जा सकेगाप् सरकार के उपर्युक्त दलीलों और दावों के बावजूद विपक्ष ,मुस्लिम समाज के उलेमाओं एवं मुस्लिम सांसदों के द्वारा इस प्रस्तावित विधेयक का पुरज़ोर विरोध किया जा रहा है। इस विधेयक का विरोध करने वालों के अपने तर्क और आशंकाएँ है। विपक्ष का मानना है कि यह विधेयक धार्मिक स्वतंत्रता और वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में हस्तक्षेप करता है। वे इसे समुदाय के अधिकारों पर सरकार का हस्तक्षेप मानते हैं। विधेयक के तहत वक़्फ़ संपत्तियों का सरकारी नियंत्रण बढ़ने की संभावना होती है। विपक्ष इसे वक़्फ़ बोर्डों की स्वायत्तता और उनके अधिकारों में कटौती के रूप में देखता है। विपक्ष का यह भी तर्क है कि यह विधेयक मुस्लिम समुदाय की भावनाओं और धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ सकता है। विपक्ष का यह भी दावा है कि इस विधेयक को बिना पर्याप्त परामर्श और चर्चा के पारित किया जा रहा है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन है।
सरकार के बिल के समर्थन में प्रस्तुत तर्कों और विपक्ष के विरोध के अलावा अनेक हितधारक है जिनके हित इस विधेयक के माध्यम से प्रभावित होंगे। इस्लामिक मामलों के जानकार और पसमांदा मुस्लिम अधिकार कार्यकर्ता डॉ. फैयाज अहमद फैजी का कहना है कि प्रस्तावित बदलाव क्रांतिकारी हैं, इस से वक्फ की संपत्तियों के पंजीकरण, सत्यापन, लेनदेन में पारदर्शिता आएगी और इससे गरीब मुसलमानों को वक्फ के विवादों से मुक्ति मिलेगी। डॉ. फैयाज अहमद फैजी ने कहा कि अबतक मुसलमानों की हर संस्था पर अशराफ वर्ग यानी विदेशी मूल के मुसलमानों का एक छत्र कब्जा रहा है। लेकिन नए वक्फ बोर्ड बिल के प्रस्तावों में महिलाओं के साथ-साथ पसमांदा वर्ग के मुसलमानों के लिए प्रावधान किए गए हैं। इससे महिलाओं-पसमांदा वर्ग के लोगों की बेहतरी की राह खुलेगी।
कोई भी नया बदलाव परम्परावादियों को परेशान करता है और केवल इसलिए कि कुछ लोग विरोध कर रहे है सकारात्मक बदलाव को नहीं रोका जाना चाहिए लेकिन इसी क्रम में यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत बह-धार्मिक राष्ट्र है और इसमें हिंदू बहुसंख्यकों के साथ कई अल्पसंख्यक धार्मिक-सांस्कृतिक समूह भी रहते हैं। अल्पसंख्यक समुदायों में मुस्लिम अल्पसंख्यक वर्ग महत्वपूर्ण है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में कोई भी नीति गत बदलाव बग़ैर व्यापक चर्चा और विमर्श के लागू नहीं करना चाहिएप् यदि मुस्लिम समाज से यह आवाज़ आ रही है कि इस विधेयक को लाने से पहले उनके हितधारकों से ना तो चर्चा किया गया और ना ही इसकी निर्मायक अंगों में उसको शामिल किया गया तो यह स्वाभाविक है कि ऐसे बदलाव के ख़िलाफ़ असंतोष अवश्य उत्पन्न होगा। ऐसे में सरकार का यह नैतिक दायित्व है कि इस विधेयक से जुड़ी अस्पष्टता और आशंका को जल्द से जल्द दूर किया जाय और युक्ति युक्त संशोधन की ज़रूरत पड़े तो वो भी किया जाय।
प्रो बंदिनी कुमारी
लेखिका समाज शास्त्र की प्रोफेसर हैं और उत्तर प्रदेश के डिग्री कॉलेज में कार्यकर्ता हैं।