जिसे ‘चिराग’ समझा, उसी ने बुझा दिया खुशियों का दीपक

देहरादून। बेटे हरमीत को पाने के लिए जय सिंह ने अपनी दूसरी पत्नी से 10 साल तक अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ी। तब जाकर वह 12 साल की उम्र में हरमीत को अपने घर लेकर आ पाए थे। तब उन्होंने इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी कि घर का यह ‘चिराग’ ही उनके परिवार की खुशियों का दीपक बुझा देगा।

इस मामले के शिकायतकर्ता अजीत सिंह ने बताया कि जय सिंह ने दो शादी की थीं। उनकी पहली पत्नी कुलवंत कौर को कोई संतान नहीं हुई। ऐसे में अजीत ने अपनी बेटी हरजीत को पैदा होने के कुछ दिन बाद ही जय सिंह को गोद दे दिया था। जय सिंह उसे बहुत प्यार करते थे। इसके बाद जय सिंह की पहचान सहारनपुर निवासी अनीता से हुई। उन्होंने अनीता से दूसरी शादी कर ली। जय सिंह और अनीता के दो बेटे हुए। उसमें हरमीत बड़ा था। हरमीत के जन्म के कुछ समय बाद ही अनीता और जय सिंह में अनबन रहने लगी। बात तलाक तक पहुंच गई। जय सिंह ने हरमीत को पाने और तलाक के लिए अनीता से दस साल तक कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ी। अंत में जब फैसला हुआ तो कोर्ट ने हरमीत को जय सिंह की कस्टडी में सौंप दिया।

वहीं, अनीता और दूसरे बेटे की परवरिश के लिए जय सिंह को उन्हें 50 लाख रुपये देने पड़े। इसके बाद जय सिंह, हरमीत को घर ले आए। हरमीत जैसे-जैसे बड़ा होता गया, उसके अंदर संपत्ति को लेकर लालच पनपने लगा। जय सिंह बेटी हरजीत को बहुत प्यार करते थे। ऐसे में हरमीत को यह डर सताने लगा कि कहीं जय सिंह अपनी जमीन-जायदाद हरजीत के नाम न कर दें। इसको लेकर हरमीत और हरजीत के बीच अक्सर झगड़ा भी होता रहता था। इसी जमीन-जायदाद के लालच में हरमीत ने दीपावली वाले दिन इस दिल दहला देने वाली घटना को अंजाम दे डाला।

हरमीत ने पिता जय सिंह, सौतेली मां कुलवंत कौर, गर्भवती बहन हरजीत कौर और तीन साल की भांजी सुखमणि की बड़ी बेरहमी से हत्या की थी। चारों सदस्यों पर हरमीत ने कुल 85 बार चाकू से वार किया था। उसने सबसे अधिक 27 वार सौतेली मां पर किए। पिता पर 24, गर्भवती बहन पर 24 और भांजी पर 10 वार किए। उसने हरजीत के पेट में चाकू से कई वार किए, जिससे उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की भी मौत हो गई।

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