मुरादाबाद । मुरादाबाद स्थित उजाला सिग्नस ब्राइटस्टार हॉस्पिटल(Ujala Cygnus Brightstar Hospital) के डॉक्टरों ने एक नवजात शिशु में गंभीर जन्म जटिलताओं को सफलतापूर्वक ठीक किया। ममता (बदला हुआ नाम) के बच्चे का जन्म सामान्य योनि प्रसव के माध्यम से हुआ था, लेकिन उसे तत्काल और जानलेवा चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जैसे कि उसे पेरीनटल एसपिज़्सीया (प्रसवकालीन श्वासावरोध), हाइपोक्सिक-इस्केमिक एन्सेफैलोपैथी (एचआईई) स्टज 3 , मेकोनियम एस्पिरेशन सिंड्रोम और फेफड़े का ख़राब होना आदि से गुजरना पड़ा।
उजाला सिग्नस ब्राइटस्टार हॉस्पिटल – मुरादाबाद के पीडियाट्रिक कंसलटेंट, एमबीबीएस, डॉ राजीव कुमार ने केस के बारे में बताते हुए कहा, “जब बच्चे को यहां लाया गया था, तब उसकी हालत गंभीर थी। उसमें रेस्पिरेटरी फेलियर को मैनेज करने और उसकी स्थिति को स्थिर करने के लिए तत्काल मैकेनिकल वेंटिलेशन या एमवी सपोर्ट देना जरूरी था। ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल में इंट्रावेनस दवाएँ, हृदय के कार्य को बेहतर करने के लिए इनोट्रोप्स और इंटेंसिव मोनिटरिंग शामिल थी। बच्चे की सांस लेने में मदद करने के लिए एमवी का उपयोग जरूरी था। बच्चे को 48 घंटों के अन्दर मैकेनिकल वेंटिलेशन से बाहर निकाल दिया गया। यह ट्रीटमेंट के लिए तीव्र प्रतिक्रिया को दर्शाता है। एमवी ने बच्चे की रिकवरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गंभीर कॉम्प्लिकेशन के मैनेजमेंट में हमारी टीम की एक्सपर्टीज और त्वरित प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण थी।
पेरीनटल एसपिज़्सीया या बर्थ एसपिज़्सीया तब होता है जब नवजात बच्चे को जन्म लेते समय कम आक्सीजन मिलती है। जब नवजात शिशु का पहला मल, जिसे मेकोनियम कहते हैं, प्रसव के दौरान एमनियोटिक द्रव के साथ सांस के माध्यम से अंदर चला जाता है तब मेकोनियम एस्पिरेशन सिंड्रोम होता है।
बच्चे का जन्म मुरादाबाद के एक स्थानीय क्लिनिक में हुआ था, लेकिन जन्म के बाद जल्दी ही पता चल गया कि उसे इमरजेंसी केयर की आवश्यकता है। जन्म के समय वह रो नहीं रहा था और उसे कई बार दौरे पड़ रहे थे, ये लक्षण उसमें ऑक्सीजन की गंभीर कमी को दर्शा रहे थे। स्थानीय डॉक्टरों ने बच्चे को उजाला सिग्नस ब्राइटस्टार हॉस्पिटल मुरादाबाद रेफर कर दिया, जहाँ नवजात शिशु को नियोनटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में भर्ती कराया गया।
हॉस्पिटल में भर्ती होने पर उजाला की मल्टी-स्पेशलिटी मेडिकल टीम ने तुरंत बच्चे में (एचआईई) ग्रेड 3, मेकोनियम एस्पिरेशन सिंड्रोम, लेफ्ट साइड न्यूमोथोरैक्स और राईट साइड लंग कंसोलिडेशन का डायग्नोसिस किया। एक्सट्यूबेशन के बाद बच्चे की हालत में काफी सुधार देखने को मिला। उसने दूध पीना शुरू कर दिया, और उसकी आवाज़ और रोना सामान्य हो गया। मेडिकल टीम ने उसकी न्यूरोलॉजिकल स्थिति और श्वसन क्रिया पर बारीकी से नज़र रखी, जिससे काफी सुधार दिखाई दिया। बच्चे की न्यूरोलॉजिकल स्थिति में काफी सुधार हुआ, और न्यूमोथोरैक्स और दाएं तरफ के फेफड़े की जकड़न दोनों ठीक हो गई। डिस्चार्ज होने तक वह एक्टिव था, अच्छी तरह से दूध पी रहा था, और सामान्य प्रतिक्रियाएँ दिखा रहा था।
दस दिनों की इंटेंसिव केयर के बाद नवजात शिशु को हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई। छुट्टी के समय उसे राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम (एनआईएस) के अनुसार टीका लगाया गया और अब उसमें कोई लक्षण नहीं दिखे। उसके माता-पिता को उसके स्वास्थ्य की निरंतर निगरानी सुनिश्चित करने के लिए फालोअप केयर के निर्देश दिए गए हैं।
यह केस समय पर डॉक्टरों के हस्तक्षेप और एडवांस्ड नियोनटल केयर के महत्व को दर्शाता है। यूसीबीएच मुरादाबाद में एनआईसीयू टीम के संगठित प्रयासों ने न केवल बच्चे की जान बचाई, बल्कि गंभीर जन्म कॉम्प्लिकेशन से पूरी तरह से उबरने में भी मदद की।