पवित्र वेद मंत्रोच्चारण के साथ हुआ ‘भारतीय नववर्ष 2081’ का शुभारम्भ- दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान

‘‘भारतीय नववर्ष विक्रम सम्वत् 2081 पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन’’

देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक सद्गुरूदेव श्री आशुतोष महाराज जी की अनुकम्पा व आर्शीवाद से आज भारतीय नववर्ष विक्रम सम्वत् 2081 का भव्य कार्यक्रम संस्थान द्वारा जे.पी. प्लाजा, निकट कारगी चौक, देहरादून में असंख्य भक्त-श्रद्धालुगणों की उपस्थिति में हर्षोल्लास के साथ मनाया

गया। प्रातः 09ः00 बजे मंचासीन संस्थान के वेद पाठियों द्वारा वेद मंत्रों के दिव्य उच्चारण के साथ ‘रूद्रिपाठ’ कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया।
उल्लेखनीय है कि दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान वर्ष भर भारतीय पर्वों-त्यौहारों के साथ-साथ भारतीय नववर्ष विक्रम सम्वत् को भी विश्व भर में व्याप्त अपनी समस्त दिव्य शाखाओं मंे धूमधाम से विशाल स्तर पर मनाता है। गुरूदेव श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य वचनामृत के अनुसार भारतवर्ष विश्व का ‘हृदय’ है तथा जब-जब भी मानवता क्षीण हुई है तब-तब भारत ने ही अपने सनातन पावन ‘‘ब्रह्म्ज्ञान’’ के द्वारा उसे ‘अनुप्राणित’ किया है। भारतीय नववर्ष भारत की चेतना का जागरण है। प्रत्येक भारतीय को अपनी सनातन समृद्ध संस्कृति और परम्पराओं के साथ गहनता से जुड़ने पर ही अपनी इस अध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के बल पर ‘विश्वगुरू’ बन जाने की पूर्ण क्षमता का विकास कर लेना होगा।
वेदोच्चारण के पश्चात महाआरती की गई। बुलंद जयघोषों से समूचा परिसर गुंजायमान हो गया। आज से ही शक्तिपर्व ‘नवरात्र’ के शुभ आगमन पर मां जगदम्बिका भवानी की जय-जयकार होने लगी। इसके अतिरिक्त हर-हर महादेव, जय श्री राम, भारत माता की जय, भारतीय संस्कृति की जय, कृष्ण बलदेव की जय के साथ-साथ धर्म की जय हो-अधर्म का नाश हो-प्राणियों में सद्भावना हो-विश्व का कल्याण हो और गंगे मईया, धरती मईया की जय तथा ब्रह्म्ज्ञान प्रदायक, विश्व शांति के पुरोधा श्री आशुतोष महाराज जी की जय के गगनभेदी जयघोष लगाकर आज के दिवस को भक्तों ने अविस्मरणीय दिवस बना दिया। मंच से वक्ताओं ने बताया कि आज के दिन का महात्मय विविध है। श्री राम राज्य की स्थापना, श्री दयानन्द सरस्वती जी द्वारा आर्य सामाज़ की स्थापना, सतयुग में इसी दिन ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि का सूत्रपात भी किया था अतः चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सृष्टि के आरम्भ का प्रथम दिवस भी है, भगवान श्री हरि नारायण ने इसी दिवस अपना पहला अवतार मत्स्य के रूप में लिया था साथ ही युद्धिष्ठिर जी इसी दिन द्वापर युग में हस्तिनापुर में सिंहासनरूढ़ भी हुए थे इत्यादि बहुत सारे विराट कार्य चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के इस प्रथम दिवस पर ही सुसम्पन्न हुए थे।
संस्थान के संगीतज्ञों द्वारा इस दिवस की महिमा मंे अनेक सुंदरतम भजनों का गायन कर उपस्थित संगत को भाव-विभोर कर दिया। भंजन नं. 1- दिव्य धरा, दिव्य गगन हो, दिव्य दसों दिशाएं, विश्व शांति की उज्जवल किरणें, चहुं ओर छा जाएं…… 2- राम राज्य सकार हो उठे, कलियुग सतयुग बन जाए, ऐसी कृपा दृष्टि कर दो प्रभु, स्वर्ग धरा पर आ जाएं…… 3- माँ जगदम्बा भवानी की शान में प्रस्तुत भजन-प्यारा सजा है तेरा द्वार भवानी, तेरे भक्तों की लगी है कतार भवानी-बड़ा प्यारा सजा है तेरा द्वार भवानी 4- उत्तराखण्डी भाषा में गाया गया भजन- एैजा माता महल मा, बस जा माता दिल मा, जय-जय काली माँ- जय-जय शेरों वाली माँ…… संगत नृत्य कर उठी।
कार्यक्रम में आज के स्वर्णिम दिवस पर सद्गुरू श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या तथा दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की प्रचारिका साध्वी विदुषी जाह्नवी भारती जी ने अपने प्रवचनों के मध्य बताया कि नई उमंग और नव उत्साह से भरा यह भारतीय नववर्ष अपने भीतर अनेक कीर्तिमानों को संजोए हुए है। एक बार स्वामी विवेकानन्द जी से उनके यूरोप प्रवास के चार वर्षों के पश्चात जब किसी ने पूछा कि स्वामी जी इस उन्नत और समृद्ध यूरोप मंे इतना समय व्यतीत करने के बाद अब आप भारत के संबंध में क्या कहना चाहेंगे? स्वामी जी ने कहा कि यहां आने से पहले मैं भारत से प्रेम करता था लेकिन अब मैं भारत के चप्पे-चप्पे को महान तीर्थ जानकर उसकी पूजा करूंगा। साध्वी जी ने बताया कि अपनी संस्कृति से अनभिज्ञ होने के कारण आज भारतीय लोग पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण करने लगे हैं जिससे हिंसा, अत्याचार, भ्रष्टाचार और व्यभिचार की ओर समाज़ उन्मुख होता जा रहा है। भारतीयों के पास जो अध्यात्म कोष है, जो दिव्य समृद्धि है वह सम्पूर्ण जगत में अद्वितीय है इश्वरीय प्रकाश का एक अनन्त सम्राज्य भारत अपने भीतर धारण किए हुए है। विदेशी आक्रान्ताओं ने महान भारत पर अपना आधिपत्य करने के लिए इसकी उच्चतम संस्कृति को तहस-नहस किया। एक हज़ार साल तक विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत की समृद्धि को, ऐश्वर्य को जी भरके लूटा, सोने की चिड़िया के सुनहरे पंखों को नोचा-खसोटा गया। सिकन्दर से लेकर शक् हमलावरों तक और मुगलों से लेकर अंग्रेज़ों तक सभी विदेशी लुटेरों ने भारत को मिटा देने के अथक प्रयास किए, लेकिन! आज भी अगर भारत अपना शीश बुलंदी के साथ उठाए हुए अविचल खड़ा है तो इसके पीछे भारत की समृद्ध अध्यात्मिक संस्कृति ही निहित है। भारत इतना विशाल महासागर है कि जिसने अपने गर्भ मंे संसार की अनेक छोटी-छोटी विभिन्न जाति-सम्प्रदायों सदृश नदियों को आश्रय देकर उन्हें भी महासागर के रूप में ही परिवर्तित कर दिया है। भारत की गुरूकुल पद्धति आज भी समीचीन है। यह शिक्षा पद्धति आज भी भारत की बाट जोह रही है। आज जो वैज्ञानिक रिसर्च हो रही हैं उन्हें तो हमारे वैदिक ऋषियों-मुनियों ने सहस्त्रों वर्ष पूर्व ही प्रकाशित कर दिया था। अध्यात्म पंूजी से आत्म जाग्रत होकर ही भारत निरंतर आगे बढ़ सकता है, पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है। सबसे प्राचीन संस्कृति, भारतीय संस्कृति आज अडिग चट्टान की मानिंद अगर खड़ी है तो मात्र अपने अध्यात्म ज्ञान के कारण ही। साध्वी जी ने कहा कि भारत की सम्पूर्ण व्याख्या यही है कि भा$रत अर्थात प्रकाश में लीन रहने वाले लोगों का देश है भारत।
समापन से पूर्व दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के तमाम समाज़ सुधार के प्रकल्पों को प्रोजेक्टर के माध्यम से मंच पर प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में सनातन भारतीय संस्कृति को अभिव्यक्त करते कई कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए गए। विशेषतः आचार्य चाणक्य का भारतीय विद्यार्थियों के लिए उद्घोषित अनमोल सूत्र। साथ ही दो नृत्य नाटिकाओं का भी मंचन कर भारतीय नववर्ष के इस अनूठे कार्यक्रम में प्रेरणाप्रद मोती भी पिरोए गए। बेसहारा बच्चों की शिक्षा हेतु संस्थान द्वारा चलाया जा रहा प्रकल्प ‘मंथन’ के लिए गणपति वंदना का कार्यक्रम काफी रोचक रहा। सद्गुरू प्रदत्त ‘ब्रह्मज्ञान’ को मानव मात्र के लिए उसके ‘जन्मसिद्ध अधिकार’ के रूप में दर्शाया गया। ब्रह्मज्ञान ही मानव जगत के उत्थान तथा विश्व शांति के समाधान हेतु अत्यंत कारगर उपाए के रूप में बताया गया। कार्यक्रम मंे अनेक गणमान्य महानुभावों द्वारा शिरकत कर कार्यक्रम का लाभ उठाया गया।
अंत में आयोजकों द्वारा समस्त संगत सहित सेवादारों और कार्यक्रम की सफलता में अपना प्रत्यक्ष एवं परोक्ष सहयोग देने वाले स्वयंसेवकों का भी आभार व्यक्त किया गया। तत्पश्चात! विशाल भण्डारे का आयोजन हुआ।

 

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