साधक के अंर्तमन में हर दिन होली, हर रात दिवाली

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, देहरादून
देहरादून। दीपावली के पावन पर्व पर फूल-मालाओं से सजे ‘दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान’, निरंजनपुर के आश्रम सभागार में उपस्थित भक्तजनों को दीपावली के महातम्य की विस्तृत शास्त्रोक्त गूढ़ अध्यात्मिक रहस्यों से परिपूर्ण विवेचनाओं से अवगत कराया गया। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक सद्गुरू श्री आशुतोष महाराज जी की प्रेरणा तथा अनुकम्पा से मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम के संबंध में मंचासीन साध्वी विदुषियों द्वारा अनेक सटीक प्रेरणादायक जानकारियां प्रदान की गईं। भजनों की दिव्य प्रस्तुतियों ने भक्तों का मन मोह लिया। ब्रह्म्ज्ञानी संगीतज्ञों के सुर तथा ताल के विहंगम तालमेल के द्वारा दीपावली का आनंद दुगना हो गया। संयुक्त रूप से साध्वी विदुषी सुभाषा भारती जी तथा साध्वी विदुषी ममता भारती जी द्वारा भजनों की सारगर्भित व्याख्या की गई। भजन- 1. तेरा ध्यान हो सदा, हमंे एैसा वर दो……. 2. बन जाएगा ये नाम राम का, कर ले तू सुमिरन हरि के नाम का…….. 3. कष्ट हरन तेरो नाम राम, सिया राम-सिया राम, राम-राम-राम…… 4. मेरी झोंपड़ी के भाग आज जाग जाएंगे, श्री राम आएंगे, प्रभु राम आएंगे….. 5. आशु जी की कुटिया को मैंने फूलों से सज़ाया है…….. 6. राम तुम्हारा धाम छोड़के और कहाँ मैं जांऊँ…… तथा 7. सजा दो घर को गुलशन सा मेरे प्रभु राम आए हैं…… इत्यादि भजन संगत को निहाल कर गए।
साध्वी विदुषी सुभाषा भारती जी ने बताया कि कण-कण में रमण करने वाली दिव्य शक्ति ही राम हैं। पंण्डितों-पुरोहितों ने प्रभु का नाम श्री राम इसीलिए रखा क्योंकि वह परम शक्ति मानव रूप में महाराजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में अवतरित हुई थी। राम को अपने अंर्तहृदय में सद्गुरू के द्वारा प्रकट किया जा सकता है, यह एक सनातन सार्वभौमिक तथ्यात्मक वह तकनीक है जो कि सद्गुरूदेव द्वारा प्रदत्त ‘ब्रह्म्ज्ञान’ से प्रकाशमान हुआ करती है। जीवात्मा को बिना श्रीराम को जाने उनकी भक्ति पूर्ण हो पाना असम्भव बात है। जगमग करती दीपावली को यदि हर पल, हर क्षण आठों प्रहर अपने अर्तमन में प्रकाशित करना है तो तत्ववेत्ता ब्रह्म्निष्ठ पूर्ण सद्गुरू की शरणागति अत्यंत आवश्यक है।
साध्वी विदुषी ममता भारती जी ने कहा कि जहाँ प्रकाश हो जाता है वहां से अंधकार स्वतः ही दूर हो जाया करता है। आज संसार अज्ञानता के अंधकार में भटकाव वाली स्थिति में विचरण कर रहा है, वह दुखी है, अशांत है, मानसिक विकारों के कारण दुविधाजनक स्थिति में स्वयं को विकट रूप से त्रस्त पाता है। इसका एकमात्र कारण यही है कि वह अपने मूल परमात्मा के साथ अभी शाश्वत् रूप से जुड़ नहीं पाया है। इसके लिए उसे अविलम्ब भारत की सनातन-पुरातन भवतारिणी गंगा सदृश्य ब्रह्म्ज्ञान की प्राप्ति कर अपने उस प्रकाश स्वरूप आत्मा के साथ इकमिक होना होगा जहां हर समय दिव्य प्रकाश अपनी छटा बिखेर रहा है, जहां राम का वह शाश्वत् नाम जो कि लिखने, पढ़ने, बोलने के साथ-साथ किसी भी भाषा में दर्ज़ नहीं है, यह नाम मनुष्य की श्वांस-श्वांस में गुंजाएमान है, जो कि सद्गुरू की कृपा से ही श्वांसों में प्रकट हुआ करता है, जहां प्रभु श्री राम का अनन्त साम्राज्य अपने अंश को अपने भीतर समेट लेने के लिए आतुर है। इस प्रकाश के संबंध में गोस्वामी तुलसीदास जी पावन ग्रंथ श्रीराम चरित मानस के माध्यम से समस्त मानव समाज़ को यह संदेश दे रहे हैं- राम भक्ति चिंतामणि सुन्दर, बसंहि गरूड़ जाके उर अंतर, परम प्रकाश रूप दिन राती, नहिं चाहिए कछु दिया-घृत-बाती।
कार्यक्रम की समाप्ति से पूर्व संस्थान की ओर से देहरादून आश्रम की समन्वयक साध्वी विदुषी अरूणिमा भारती जी ने उपस्थित भक्त-श्रद्धालुगणों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए देते हुए कहा कि अत्यंत सौभाग्यशाली हैं वे लोग जो कि अपने सद्गुरूदेव के पावन सानिध्य में शुभ दीपावली का यह पर्व सत्संग के माध्यम से मनाया करते हैं। सर्व अंर्तयामी सद्गुरूदेव का दिव्य सानिध्य स्वर्ग से भी बढ़कर परम आनन्द को प्रदान करने वाला होता है। ईश्वर की चर्चा, उनकी महिमा और सद्गुरू के पावन विचार जो भक्त एकाग्रचित्त होकर श्रवण करता है वह शीघ्र ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम होता चला जाता है। श्री हनुमान जी का उदाहरण संगत के समक्ष रेखांकित करते हुए उन्हांेने बताया कि इन दो पंक्तियों में भक्तों के लिए अनुपम संदेश छुपे हुए है। प्रभु कथा सुनिबे को रसिया। इस पंक्ति से पवनपुत्र की जो भावना उजागर की गई है वह बड़ी सारगर्भित है अर्थात जिन्हें प्रभु श्री राम की कथा, उनकी महिमा उनका अनन्त चरित्र सुनने में रस आता है, श्री हनुमान जी प्रभु के उसी नाम के रसिया हैं। दूसरी पंक्ति है- राम काज़ करिबे को आतुर। अर्थात श्री हनुमान जी भगवान श्री राम के समस्त काज़ (सेवा) करने के लिए सदैव आतुर (व्याकुल) रहा करते हैं। साध्वी जी ने विशेष रूप से यह भी कहा कि भक्ति मार्ग पर सेवा कोई सी भी हो सभी का अत्यंत महत्व हुआ करता है इसलिए एक साधक को कभी भी सद्गुरू की सेवा का वर्गीकरण नहीं किया जाना चाहिए। प्राणप्रण से और निष्काम भाव से गुरूवर की सेवा साधक को अपने सद्गुरू के इतना निकट ले आती है कि फिर गुरू और शिष्य एकत्व में परिणत होकर एकमत हो जाया करते हैं। यह विलक्षण अवस्था तभी सम्पन्न हुआ करती है जब शिष्य पूर्ण रूपेण अपने सद्गुरूदेव की आज्ञा में स्वयं को स्वाहा कर दिया करता है। एैसे ही भक्त साधक के लिए प्रभु कहा करते हैं- ‘तू वो कर जो मैं चाहता हूं, फिर मैं वो करूंगा जो तू चाहता है’।
प्रसाद का वितरण करके साप्ताहिक कार्यक्रम को विराम दिया गया।
उल्लेखनीय है कि दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान दिनांक 20 नवम्बर 2023 से दिनांक 26 नवम्बर 2023 तक अपने आश्रम सभागार में एक दिव्य तथा भव्य ‘‘भगवान शिव कथा’’ का आयोजन कर रहा है जिसका समय अपरान्ह 03ः00 बजे से सायं 06ः00 बजे तक रहेगा। कार्यक्रम में कथा व्यास साध्वी सुश्री गरिमा भारती जी व्यासपीठ पर आसीन होकर कथा का वाचन करेंगी। साथ ही विदित हो कि इस विलक्षण कार्यक्रम हेतु दिनांक 19 नवम्बर 2023 को सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा एक ‘कलश यात्रा’ का भी आयोजन किया जा रहा है, जो कि प्रातः 09ः00 बजे कथा स्थल- दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान आश्रम, 70 इंदिरा गांधी मार्ग (सत्यशील गैस गोदाम के सामने) निंरजनपुर, देहरादून- उत्तराखण्ड से प्रारम्भ होकर नगर के विभिन्न प्रमुख स्थानों से होती हुई वापस आश्रम परिसर में ही सम्पन्न होगी। उत्तराखण्ड के समस्त निवासियों को संस्थान की ओर से इस कार्यक्रम में पधारने का भावपूर्ण निमंत्रण है।

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