-माह के प्रथम रविवार पर कार्यक्रम का शुभारम्भ वेदमंत्रों के पवित्र गायन के साथ हुआ
देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की शाखा, 70 इंदिरा गांधी मार्ग, (सत्यशील गैस गोदाम के सामने) निरंजनपुर के द्वारा आज आश्रम प्रांगण में दिव्य सत्संग-प्रवचनों एवं मधुर भजन-संर्कीतन के कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। सद्गुरू श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या तथा देहरादून आश्रम की प्रचारिका साध्वी विदुषी जाह्नवी भारती जी ने उपस्थित भक्तजनों को मानव जीवन की विकट और संघर्षशील स्थित पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मानव जीवन एक प्रकार का रंगमंच ही तो है जिसमें सभी को अपनी-अपनी भूमिका निभानी होती है। कोई जीवन की बाजी जीतकर तो कोई अपनी भूमिका में विफल होकर संसार से कूच कर जाता है। अनेक पात्रों को जीते हुए मनुष्य अपने परम लक्ष्य के प्रति यदि जागरूक नहीं हुआ तो समूचा जीवन ही व्यर्थ चला जाता है। यदि शाश्वत ईश्वरीय मार्ग प्राप्त हो जाए, संत-सदगुरू के कृपाहस्त तले सनातन ‘ब्रह्म्ज्ञान’ के द्वारा भक्ति मार्ग की प्राप्ति हो जाए तो इसी में मनुष्य जीवन का परम कल्याण है। मानव के समक्ष दो मार्ग हुआ करते हैं एक प्रेय मार्ग होता है जिस पर कि चलने पर शुरूआत में सुख और साधन प्राप्त होते जाते हैं किन्तु अंत में इस मार्ग का पटाक्षेप अत्यंत दुख भरा हुआ करता है, जब कि दूसरा मार्ग श्रेय मार्ग है यह प्रारम्भ में तो काफी दुष्कर और विषमताओं, संघर्षों से परिपूर्ण होता है लेकिन अंततः इसका समापन असीम शांति और आनन्द में हुआ करता है। भक्ति मार्ग पर चलने के लिए ‘योद्धा’ बनना पड़ता है तभी विजयश्री का आलिंगन वह कर पाता है। महात्मा बुद्ध का जीवन प्रसंग उद्धृत करते हुए साध्वी जी ने विस्तार पूर्वक समझाया कि परिस्थिति से डरने की बजाए उसका सामना करना चाहिए। सद्गुरू अपने शिष्य का निर्माण कर उसे निरंतर उंचाई की ओर अग्रसर किया करते हैं। संघर्ष जितना बड़ा, जीत भी उतनी ही बड़ी ओर महान होगी। जब अंधकार पराकाष्ठा को छूने लगे तो समझ लेना चाहिए कि उजाला अत्यंत निकट है। ईश्वर की भक्ति ही मानव जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि हैै।
मर्मस्पर्शी भजनों की मनमोहक प्रस्तुति देते हुए मंचासीन ब्रह्मज्ञानी साघकों ने खूब समां बांधा।
भजनों में 1- अपना हमको पावन संग दो, हर पल, हर क्षण थाम के हमको अपने ही रंग में रंग दो……. 2- अपनी हर अवस्था में कभी धर्म मत खोना, गुरूवर सुनते हैं…….. 3- आया दर पे तेरे सुनो भगवन मेरे, मेरी लाज रखो-मेरी लाज रखो…….. 4- तेरे उपकारों का गुरूवर, रोम-रोम आभारी है…….. इत्यादि भजनों पर संगत झूमने लगी।
सत्संग की पावन गंगा में धुल जाता है मन का मैल- साध्वी ऋतम्भरा भारती जी :-
भजनों की मिमांसा करते हुए मंच का संचालन साध्वी विदुषी ऋतम्भरा भारती जी के द्वारा किया गया। उन्होंने बताया कि मन का मैल धोने की सर्वोत्तम गंगा का नाम है सत्संग। सत्संग विचार कोई साधारण बात नहीं है ये तो वे महान और श्रेष्ठ विचारों के मोती हैं जो मनुष्य जीवन को श्रेष्ठतम मार्ग प्रदान कर उसे महान बनाते हैं, विशेष बनाते हैं। जो भी परमात्मा को प्रिय लगता है, जो उन्हंे सर्वाधिक भाता है वह सब कुछ पूर्ण गुरू के सत्संग में प्राप्त हो जाता है। पूर्ण सद्गुरू समदृष्टा हुआ करते हैं वे अपने शरणागत् के भीतर गुण-अवगुण कुछ नहीं देखते, सब पर एक समान कृपा कर उनका जीवन संवार दिया करते हैं। ‘ब्रह्म्ज्ञान’ उनकी अप्रतिम सौगात होती है जिसके द्वारा जीव अपने अंर्तजगत में परमात्मा का स्पष्ट दीदार किया करता है। यहीं से भक्ति का शुभारम्भ हो जाता है।
क्षणभंगुर जीवन हमेशा रहने वाला नहीं, परमलक्ष्य की प्राप्ति शीघ्र हो- विदुषी अरूणिमा भारती जी:-
समापन से पूर्व साध्वी अरूणिमा भारती जी ने कहा कि मनुष्य का जीवन अनमोल है साथ ही क्षणभंगुर भी है। इसलिए यथाशीघ्र मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य ‘ईश्वर की प्राप्ति’ कर लिया जाना चाहिए। मनुष्य अपना सारा जीवन सुख की प्राप्ति में किए गए जतन पर ही केंद्रित रखता है परन्तु विडम्बना है कि उतना ही अधिक दुख उसके जीवन में आता दिखलाई पड़ता है। कहा भी गया- ‘सुख के जतन बहुत किए, दुख का किया न कोय, तुलसी यह आश्चर्य है अधिक-अधिक दुख होय।’ परमात्मा की प्राप्ति में यदि दुख भी मिलते हों तो यह एक सस्ता सौदा ही तो है, बिना प्रभु के यदि सुख मिल भी जाए तो किस काम का? भक्तों ने तो यहां तक कह दिया- ‘सुख के माथे सिल परे जो नाम हृदय से जाए, बलिहारी वा दुख के जो पल-पल नाम जपाए।’ संतो ंके सानिध्य में ही सच्चा सुख और परम आनन्द की प्राप्ति की जा सकती है। सद्गुरू प्रदत्त ‘ब्रह्म्ज्ञान’ की भक्ति के भीतर समस्त सुख विद्यमान हुआ करते हैं।
माह का प्रथम रविवार होने पर आश्रम में विशाल भंडारा आयोजित किया गया। भक्तजनों ने भंडारे का प्रसाद ग्रहण कर जीवन कृतार्थ किया।
भवदीय- दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, देहरादून